G00 (ख) श्रीमद्भागवत्गीता, वेद-उपनिषद् एवं संतवाणीयों में सद्गुरु से संबंधित वचन ।। सद्गुरु महर्षि मेंहीं - SatsangdhyanGeeta

Ad1

Ad2

G00 (ख) श्रीमद्भागवत्गीता, वेद-उपनिषद् एवं संतवाणीयों में सद्गुरु से संबंधित वचन ।। सद्गुरु महर्षि मेंहीं

श्रीगीता-योग-प्रकाश / भूमिका (ख) 

प्रभु प्रेमियों ! भारत ही नहीं, वरंच विश्व-विख्यात श्रीमद्भागवत गीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा गाया हुआ गीत है। इसमें 700 श्लोक हैं तथा सब मिलाकर 9456 शब्द हैं। इतने शब्दों की यह तेजस्विनी पुस्तिका भारत की आध्यात्म-विद्या की सबसे बड़ी देन है। संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्ततक "श्रीगीता-योग-प्रकाश" इसी पुस्तिका के बारे में फैले हुए सैकड़ों भ्रामक विचारों को दूर करने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें सभी श्लोकों के अर्थ और उनकी टीका नहीं है। गीता के सही तात्पर्य को समझने के लिए जो दृष्टिकोण, साधनानुभूति-जन्य ज्ञान, संतवाणी-सम्मत और गुरु ज्ञान से मेल खाते वचन चाहिए, वही इसमें दर्शाया गया है।

इस पोस्ट में इसी पुस्तक के भूमिका के बारे में जानकारी दी गई है और महापुरुषों के वाणी का असर कैसा होता है?  गीता ज्ञान किसके लिए है ? क्या गुरु की आवश्यकता नहीं रह गई?  हमारा धर्म शास्त्र गुरु के संबंध में क्या कहता है?  गुरु के संबंध में संत-महात्माओं के क्या विचार हैं? श्रीगीता और उपनिषद गुरु के संबंध में क्या कहती है ? आदि बातों पर चर्चा किया गया है। इस बारे में जानकारी प्राप्त करने के पहले सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन करें।

"G00 (क) विश्व विख्यात ग्रंथ ..." नामक भूमिका का प्रथम भाग पढ़ने के लिए     यहां दवाएं।


गुरु के संबंध में गंभीर चिंतन करते हुए सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज

श्रीमद्भागवत्गीता, वेद-उपनिषद् एवं संतवाणीयों में सद्गुरु से संबंधित वचन

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज 'श्रीगीता-योग-प्रकाश' पुस्तक की भूमिका में महापुरुषों एवं गुरु के संबंध में लिखते हुए बताते हैं - "mahaapurushon ke vaanee ka asar kaisa hota hai? geeta gyaan kisake lie hai ? kya guru kee aavashyakata nahin rah gaee? hamaara dharm shaastr guru ke sambandh mein kya kahata hai? guru ke sambandh mein sant-mahaatmaon ke kya vichaar hain? sangeeta aur upanishad guru ke sambandh mein kya kahatee hai ? aadi baaton par charcha kiya gaya hai." आइए गुरु महाराज द्वारा लिखित भूमिका को ही पढ़कर इस संबंध में अच्छी तरह जानते हैं- 


भूमिका (भाग ख)

....अन्य कोई कहे तो कहे , मगर कहनेवाले यदि भारत के उत्तम पुरुषों में से कोई हों और भारत के अध्यात्म - जगत् की सर्वोत्तम उपाधि से विभूषित हों यानी “ सन्त ' कहलाते हों , तो स्थिति और गम्भीर हो जाती है । ये सन्त यदि कहें कि ' मेरे जीवन में गीता ने जो - जो स्थान पाया है , उसका मैं शब्दों में वर्णन नहीं कर सकता हूँ । गीता का मुझपर अनन्त उपकार है । मेरा शरीर माँ के दूध पर जितना पला है , उससे कहीं अधिक मेरा हृदय व बुद्धि दोनों गीता से पोषित हुए हैं । मैं प्राय : गीता के ही वातावरण में रहता हूँ , गीता यानी मेरा प्राण तत्त्वा ' और फिर वे ही अगर कहें कि ' अब ध्यानयोग - अभ्यास करने का युग नहीं है ' , तो स्थिति गम्भीरतम हो जाती है । और यही विदित होता है कि देश का अमंगलकाल ही चला आया है ।

     किसी को नहीं चाहिए कि कर्मयोगी बनते हुए कर्मयोग का तो वे गुणगान करें और ध्यानयोग को आधुनिक काल के लिए अव्यावहारिक बताकर जन - साधारण को उससे विमुख करें । 

     गीतोक्त - ज्ञान जन - साधारण के लिए ही है । साधारणतया यह मान लिया गया है कि गीता साधु - संन्यासियों के व्यवहार की चीज है ; किन्तु स्वयं गीता सबको गीता - ज्ञान का अधिकारी मानती है । यहाँ सवर्ण , अवर्ण , स्त्री , शूद्र , पापी और दुराचारी ; सभी के लिए गीता गंगा का जल - रूपी उपदेश समान रूप से सुलभ है । ( गीता , अध्याय ६ , श्लोक ३० से ३२ ) 

     यहाँ उपदेश और उपदेष्टा ( गुरु ) के लिए कुछ कहना आवश्यक प्रतीत होता है ; क्योंकि कुछ ऐसे भी सज्जन हैं , जिनका मत है कि अध्यात्म - साधन के लिए गुरु की कोई  आवश्यकता नहीं , परमात्मा ही एकमात्र गुरु हैं । 

     उनसे मेरा निवेदन है कि ऐसे विचार गीता एवं भारतीय अध्यात्म - विद्या की शिक्षा - परम्परा के सर्वथा विरुद्ध हैं । गीता के चौथे अध्याय में लिखा है 
' तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया । उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः ॥३४ ॥ ' 

     तत्त्व को जाननेवाले ज्ञानी पुरुषों से भली प्रकार दण्डवत् प्रणाम तथा सेवा और निष्कपट भाव से किए हुए प्रश्न - द्वारा उस ज्ञान को जान ; वे मर्म को जाननेवाले ज्ञानीजन तुझे उस ज्ञान का उपदेश करेंगे । 

     अध्याय १३ में है अमानित्वमदम्भित्वमहिंसा क्षान्तिरार्जवम् । आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्मविनिग्रहः ॥७ ॥ 
अमानित्व ( मान का अभाव ) , अदंभित्व ( दंभ का अभाव ) , अहिंसा , क्षमा , सरलता , आचार्य ( गुरु ) की सेवा , शुद्धता , स्थिरता , आत्मसंयम - यह सब ज्ञान कहलाता है । इससे जो उलटा है , वह अज्ञान है । ' 
देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम् । ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते ॥( गीता , अध्याय १७ , श्लोक १४ ) 

      देव , ब्राह्मण , गुरु और ज्ञानी की पूजा , पवित्रता , सरलता , ब्रह्मचर्य और अहिंसा - यह शारीरिक तप कहलाता है । 

     हमारे यहाँ . उपनिषदादि ग्रन्थों से लेकर भगवान बुद्ध , भगवान शंकराचार्य , महायोगी श्रीगोरखनाथजी , सन्त कबीर साहब , गुरु नानक साहब , गोस्वामी तुलसीदासजी इत्यादि अर्वाचीन साधु पुरुषों तक गुरु और उनके महत्त्व की मान्यता अव्याहत रूप से चली आ रही है । यहाँ तद्विषयक प्रमाणार्थ उपनिषद् एवं सन्तवाणियों को उद्धृत किया जाता है । 
' तद्विज्ञानार्थ स गुरुमेवाभिगच्छेत् समित्पाणिः श्रोत्रियं 1 ब्रह्मनिष्ठम् । ' ( मुण्डकोपनिषद् १।२।१२ ) 
जिज्ञासु को परमात्मा का वास्तविक तत्त्वज्ञान प्राप्त करने के लिए हाथ में समिधा लेकर श्रद्धा और विनय - भाव के सहित ऐसे सद्गुरु की शरण में जाना चाहिए , जो वेदों के रहस्य को भली - भाँति जानते हों और परब्रह्म में स्थित हों ।
---- इति शुश्रुम धीराणम् येनरतद्विचचक्षिरे । ' ( ईशोपनिषद् ) 

     इस प्रकार हमने उन परम ज्ञानी महापुरुषों से सुना है , जिन्होंने हमें यह विषय पृथक् - पृथक् रूप से व्याख्या करके भली - भाँति समझाया था । 

त्रिपाद्विभूति महानारायणोपनिषद् में 
'शान्तो दान्तोऽतिविरक्तः सुशुद्धो गुरुभक्तस्तपोनिष्ठ : शिष्यो ब्रह्मनिष्ठं गुरुमासाद्य प्रदक्षिणपूर्वकं दण्डवत्प्रणम्य प्राञ्जलिर्भूत्वा विनयेनोपसंगम्य भगवन् गुरो मे परमतत्त्व रहस्यं विविच्य वक्तव्यमिति । '
 शान्त , दमनशील , अति विरक्त , अति शुद्ध , गुरुभक्त , तपोनिष्ठ शिष्य ब्रह्मनिष्ठ गुरु के पास जाकर प्रदक्षिणा और दण्डवत् प्रणाम करके हाथ जोड़कर नम्रता के साथ कहे - ' हे भगवन् मेरे गुरु ! परम तत्त्व - रहस्य विवेचन के साथ मुझे बतलाइए । '

महोपनिषद् में 
दुर्लभो विषयत्यागो दुर्लभं तत्त्वदर्शनम् । दुर्लभा सहजावस्था सद्गुरोः करुणां विना ॥७७ ॥ 
सद्गुरु की दया के बिना विषय - त्याग दुर्लभ है , तत्त्वदर्शन दुर्लभ है और सहजावस्था दुर्लभ है । 

योगशिखोपनिषद् के पाँचवें अध्याय में 
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवः सदाशिवः । न गुरोरधिकः कश्चिन्त्रिषु लोकेषु विद्यते ॥५६ ॥ दिव्यज्ञानोपदेष्टारं देशिक परमेश्वरम् । पूजयेत्यरया भक्त्या तस्य ज्ञानफलं भवेत् ॥५७ ॥ यथा गुरुस्तथैवेशो यथैवेशस्तथा गुरुः । पूजनीयो महाभक्त्या न भेदो विद्यतेऽनयोः ॥५८ ॥ 
गुरुदेव ही ब्रह्मा , विष्णु और सदाशिव हैं । तीनों लोकों में गुरु से बढ़कर कोई नहीं है । दिव्य ज्ञान के उपदेश देनेवाले उपस्थित प्रत्यक्ष परमेश्वर की , भक्ति के साथ उपासना करे , तब वह ( शिष्य ) ज्ञान का फल प्राप्त करेगा । जैसे गुरु हैं , वैसे ही ईश हैं ; जैसे ईश हैं , वैसे ही गुरु हैं ; इन दोनों में भेद नहीं है , इस भावना से पूजा करे ।

कर्णधारं गुरुं प्राप्य तद्वाक्यं प्लववदृढम् । अभ्यासवासनाशक्त्या तरन्ति भवसागरम् ॥७६ ॥ 
( योगशिखोपनिषद् , अध्याय ६ ) 
गुरु को कर्णधार ( मल्लाह ) पाकर और उनके वाक्य को नौका पाकर अभ्यास ( करने की ) वासना की शक्ति से भवसागर को लोग पार करते हैं । 

देहस्थाः सर्वविद्याश्च देहस्थाः सर्वदेवताः । देहस्था : सर्वतीर्थानि गुरुवाक्येन लभ्यते ॥ ४ ॥ 
इस देह में सब विद्या , सब देवता और सब तीर्थ , विराजमान हैं । केवल गुरु के उपदेश से ही देहस्थित ये सब विद्या , देवता और तीर्थ जाने जाते हैं ।

     हम पहले ही कह आये हैं कि गीता में उपनिषदों का सार है । एवं इसकी भाषा में तार - सन्देश की - सी संक्षिप्तता है । इसलिए गीता गुरु - सम्बन्धी उपर्युक्त विचारों को एक श्लोक मं देती है । 
तद्विद्वि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया । उपदेश्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः ॥ ( गीता ४.३४ ) 
इसे तू तत्त्व के जानेवाले ज्ञानियों की सेवा करके और नम्रतापूर्वक विवेक - सहित बारम्बार प्रश्न करके जानना । वे तेरी जिज्ञासा तृप्त करेंगे । 

     तथा गुरु और ज्ञानी की पूजा करने की गीता शारीरिक तप की संज्ञा देती है । ( गीता २७.१४ ) .... क्रमशः।।


इस भूमिका के शेष भाग को पढ़ने के लिए      यहां दबाएं।


प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "श्रीगीता योग प्रकाश" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि "What is the effect of speech of great men?  Who is the Gita knowledge for?  Is there no need for a guru?  What does our Dharma Shastra say in relation to Guru?  What are the thoughts of saints and mahatmas regarding Guru?  What does Sangeeta and the Upanishads say in relation to the Guru?  Other things have been discussed. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्तत लेख का पाठ किया गया है- 



अगर आप श्रीमद् भागवत गीता या 'श्रीगीता-योग-प्रकाश' पुस्तक के बारे में विशेष जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो    यहां दबाएं।

    सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की पुस्तकें मुफ्त में पाने के लिए शर्त के बारे में जानने के लिए    यहां दबाएं । 

G00 (ख) श्रीमद्भागवत्गीता, वेद-उपनिषद् एवं संतवाणीयों में सद्गुरु से संबंधित वचन ।। सद्गुरु महर्षि मेंहीं G00 (ख) श्रीमद्भागवत्गीता, वेद-उपनिषद् एवं संतवाणीयों में सद्गुरु से संबंधित वचन ।। सद्गुरु महर्षि मेंहीं Reviewed by सत्संग ध्यान on 8/06/2018 Rating: 5

कोई टिप्पणी नहीं:

प्रभु-प्रेमी पाठको ! ईश्वर प्राप्ति के संबंध में ही चर्चा करते हुए कुछ टिप्पणी भेजें। श्रीमद्भगवद्गीता पर बहुत सारी भ्रांतियां हैं ।उन सभी पर चर्चा किया जा सकता है।
प्लीज नोट इंटर इन कमेंट बॉक्स स्मैम लिंक

Ad

Blogger द्वारा संचालित.