6. संसार में कैसे रहना चाहिए?
प्यारे लोगो !
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6. संतों ने संसार के खेल को देखा और कहा कि इसको छोड़ देना अच्छा है। एक बात तो यह है कि संसार के कामों से उपराम होना और दूसरी बात यह है कि संसार के कामों में लगे रहने पर भी संसार से उपरामता रहे। संसार के कामों में त्रुटि नहीं होने देकर उसमें उपरामता रहे, यह उत्तम है। जो संसार के कामों को छोड़कर रहते हैं, वे भी संसार के कामों और प्रबन्धों को छोड़कर नहीं रह सकते।
7.मनुष्य को समझ में आवे कि रास्ता क्या है? जाना कहाँ है? सबसे उत्तम स्थान कहाँ है? यह भी संसार का ही काम है। और कामों से मन को हटा लिया जा सकता है, लेकिन इससे हटा नहीं सकते। बड़े-बड़े संतों, महात्माओं को ऐसा ही देखा गया। वे लड़ाई के मैदान में नहीं गए, खेती करने नहीं गए, नौकरी नहीं की, लेकिन यह काम अपने ऊपर ले लिया कि 'चलना है रहना नहीं, चलना बिस्वाबीस।' यह ख्याल देते रहे। चलना किस रास्ते से है। कहाँ जाना है? इस बात को समझाते हैं। यह समझाना निर्वाण में जाकर नहीं होता, संसार में रहकर ही करते हैं। दूसरे वे हैं, जो संसार के कामों को करते हुए अपने चेतते हैं और दूसरों को चेताते हैं, जैसे भगवान श्रीकृष्ण।
कर ते कर्म करो विधि नाना। सुरत राख जहँ कृपानिधाना।।"
प्रभु प्रेमियों ! सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसी महाराज का यह प्रवचन नालन्दा जिलान्तर्गत भगवान महावीर और भगवान बुद्ध के विहार स्थल राजगीर में ५८वाँ अखिल भारतीय संतमत सत्संग का विशेषाधिवेशन दिनांक २८.१०.१९६६ ई० के प्रातःकालीन सत्संग में हुआ था।जिसमें उन्होंने उपरोक्त बातें कही थी । महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर के सभी प्रवचनों में कहाँ क्या है? किस प्रवचन में किस प्रश्न का उत्तर है? इसे संक्षिप्त रूप में जानने के लिए 👉यहाँ दवाएँ।
महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर |
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S245 6. संसार में कैसे रहना चाहिए || संसार में कैसे जीना चाहिए || How should one live in the world?
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
5/24/2024
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