3. ईश्वर को कौन जान सकता है?
प्यारे लोगो !
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3. वह ईश्वर आत्मगम्य है । केवल चेतन - आत्मा से जाना जाता है । शरीर के भीतर आप चेतन - आत्मा हैं और उस आत्मा से जो प्राप्त होता है , उसी को परमात्मा कहते हैं । रूप , रस , गन्ध , स्पर्श और शब्द ; इन पाँचों में से प्रत्येक को ग्रहण करने के लिए जो - जो इन्द्रिय हैं अर्थात् आँख से रूप , जिभ्या से रस , नासिका से गन्ध , त्वचा से स्पर्श और कान से शब्द ; इन इन्द्रियों के अतिरिक्त और किसी से ये पाँचो विषय ग्रहण नहीं किए जाते हैं । इसी प्रकार जो चेतन - आत्मा के अतिरिक्त और किसी से नहीं पकड़ा जाय , वही परमात्मा है ।
प्रभु प्रेमियों ! सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसी महाराज का यह प्रवचन ग्राम डोभाघाट (जिला पूर्णियाँ) अ० भा० सं० स० विशेषाधिवेशन के अवसर पर दिनांक ५.१२.१६४६ ई० के सत्संग में हुआ था ।जिसमें उन्होंने उपरोक्त बातें कही थी । महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर के सभी प्रवचनों में कहाँ क्या है? किस प्रवचन में किस प्रश्न का उत्तर है? इसे संक्षिप्त रूप में जानने के लिए 👉यहाँ दवाएँ।
महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर |
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S01, 3. ईश्वर को कौन जान सकता है? परमात्मा कौन है? Who is God?
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
5/20/2024
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प्रभु-प्रेमी पाठको ! ईश्वर प्राप्ति के संबंध में ही चर्चा करते हुए कुछ टिप्पणी भेजें। श्रीमद्भगवद्गीता पर बहुत सारी भ्रांतियां हैं ।उन सभी पर चर्चा किया जा सकता है।
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