2. ईश्वर है इसका विश्वास कैसे करें?
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"2. किसी अनादि और अनंत पदार्थ का होना बुद्धि - संगत प्रतीत होता है । मूल आदि तत्त्व कुछ अवश्य है । वह मूल और आदि तत्त्व परिमित हो ससीम हो , तो सहज ही यह प्रश्न होगा कि उसके पार में क्या है ? ससीम को आदि तत्त्व मानना और असीम को आदि तत्त्व न मानना हास्यास्पद होगा ।
अखिल अमोघ सक्ति भगवन्ता ॥
अगुन अदभ्र गिरा गोतीता ।
सब दरसी अनवय अजीता ।
निर्मल निराकार निर्मोहा ।
नित्य निरंजन सुख संदोहा ॥
प्रकृति पार प्रभु सब उरवासी ।
ब्रह्म निरीह विरज अविनासी ॥
उपर्युक्त चौपाइयों में मूल आदि तत्त्व का वर्णन गोस्वामी तुलसीदासजी ने किया है । संतों ने उसे ही परमात्मा माना है । गुरु नानकदेवजी ने कहा है-
संतों का यह विचार है कि जो सबसे महान है , जो सीमाबद्ध नहीं है , उससे कोई विशेष व्यापक हो , सम्भव नहीं है । जो व्यापक - व्याप्य को भर कर उससे बाहर इतना विशेष है कि जिसका पारावार नहीं है , वही सबसे विशेष व्यापक तथा सबसे सूक्ष्म होगा । यहाँ सूक्ष्म का अर्थ ' छोटा टुकड़ा ' नहीं है , बल्कि ' आकाशवत् सूक्ष्म ' है । जो सूक्ष्मातिसूक्ष्म है , उसको स्थूल या सूक्ष्म इन्द्रियों से जानना असम्भव है ।"
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| महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर | 
 
        Reviewed by सत्संग ध्यान
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5/20/2024
 
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