S01, 4. ईश्वर को सब कोई क्यों नहीं जान सकता है? Why can not anyone see God? - SatsangdhyanGeeta

Ad1

Ad2

S01, 4. ईश्वर को सब कोई क्यों नहीं जान सकता है? Why can not anyone see God?

4. ईश्वर को सब कोई क्यों नहीं जान सकता है?

प्यारे लोगो !

उपनिषदों के मंंत्र, संस्कृत साहित्य📚
उपनिषद


     4.जो जितना विशेष व्यापक होता है , वह उतना ही सूक्ष्म होता है । परमात्मा अपनी सर्वव्यापकता के कारण सबसे विशेष सूक्ष्म है । स्थूल यंत्र से सूक्ष्म तत्त्व का ग्रहण नहीं हो सकता है । एक बहुत छोटी घड़ी के महीन कील - काँटों को बढ़ई और लोहार की सँड़सी , पेचकश आदि मोटे - मोटे यंत्रों से घड़ी में बिठाने और निकालने के काम नहीं हो सकते उसके लिए यंत्र भी महीन ही होते हैं ।

5. हमारी भीतरी और बाहरी सब इन्द्रियाँ - नेत्र , कर्ण , नासिका , जिह्वा , त्वचा , मुख , हाथ , पैर , गुदा और लिंग - बाहर की इन्द्रियाँ तथा मन , बुद्धि , चित्त और अहंकार - अन्तर की इन्द्रियाँ ; सब - की - सब उस दर्जे की सूक्ष्म नहीं हैं जो परमात्म - स्वरूप को ग्रहण कर सकें । ये तो परमात्मा की सूक्ष्मता के सम्मुख स्थूल हैं । भला ये उसको कैसे ग्रहण कर सकती हैं । 

ओsम्संयोजत उरुगायस्य जूतिंवृथाक्रीडन्तं  मिमितेनगावः ।   
परीणसं  कृणुते  तिग्म   शृंगो   दिवा   हरिर्ददृशे    नक्तमृतः ॥
                                                  ( सा ० , अ ०८ , मं ०३ )

      इस मन्त्र के द्वारा वेद भगवान उपदेश करते हैं कि हे मनुष्यो ! हाथ , पैर गुदा , लिंग , रसना , कान , त्वचा , आँख , नाक और मन - बुद्धि आदि इन्द्रियों के द्वारा ईश्वर को प्रत्यक्ष करने की चेष्टा करना झूठ ही एक खेल करना है ; क्योंकि इनसे वह नहीं जाना जा सकता है ।  वह तो इन्द्रियातीत है ।

           यन्मनसा   न  मनुते  येनाहुर्मनो  मतम् । 
           तदेव ब्रह्म त्वं विद्धि नेदं यदिदमुपासते ॥
                                     -कनोपनिषद् ( खण्ड १ , श्लोक ५ )

    अर्थात् जो मन से मनन नहीं किया जाता , बल्कि जिससे मन मनन किया हुआ कहा जाता है , उसी को तू ब्रह्म जान । जिस इस ( देशाकालाविच्छिन्न वस्तु ) की लोक उपासना करते हैं , वह ब्रह्म नहीं है ।

नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहुना श्रुतेन । यमेवैषवृणुते   तेन   लभ्यस्तस्यैष  आत्मा  विवृणुतेतर्नूस्वाम् ॥                           -कठोपनिषद् अ ० १ , वल्ली २ , श्लोक २३ )

     अर्थात् यह आत्मा वेदाध्ययन - द्वारा प्राप्त होने योग्य नहीं है और न धारणा - शक्ति अथवा अधिक श्रवण से ही प्राप्त हो सकता है , यह ( साधक ) जिस ( आत्मा ) का वरण करता , उस आत्मा से ही यह प्राप्त किया जा सकता है । उसके प्रति यह आत्मा अपने स्वरूप को अभिव्यक्त कर देता है।"


 
    प्रभु प्रेमियों ! सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसी महाराज का यह प्रवचन ग्राम डोभाघाट (जिला पूर्णियाँ) अ० भा० सं० स० विशेषाधिवेशन के अवसर पर दिनांक ५.१२.१६४६ ई० के सत्संग में हुआ था ।जिसमें उन्होंने उपरोक्त बातें कही थी । महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर के सभी प्रवचनों में कहाँ क्या है? किस प्रवचन में किस प्रश्न का उत्तर है? इसे संक्षिप्त रूप में जानने के लिए  👉यहाँ दवाएँ। 



सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के विविध विषयों पर विभिन्न स्थानों में दिए गए प्रवचनों का संग्रहनीय ग्रंथ महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर
     प्रभु प्रेमियों ! उपरोक्त प्रवचनांश  'महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर"' से ली गई है। अगर आप इस पुस्तक से महान संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस  जी महाराज के  अन्य प्रवचनों के बारे में जानना चाहते हैं या इस पुस्तक के बारे में विशेष रूप से जानना चाहते हैं तो    👉 यहां दबाएं।

सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज की पुस्तकें मुफ्त में पाने के लिए  शर्तों के बारे में जानने के लिए.  👉 यहाँ दवाए

--×--
S01, 4. ईश्वर को सब कोई क्यों नहीं जान सकता है? Why can not anyone see God? S01,  4. ईश्वर को सब कोई क्यों नहीं जान सकता है? Why can not anyone see God? Reviewed by सत्संग ध्यान on 5/21/2024 Rating: 5

कोई टिप्पणी नहीं:

प्रभु-प्रेमी पाठको ! ईश्वर प्राप्ति के संबंध में ही चर्चा करते हुए कुछ टिप्पणी भेजें। श्रीमद्भगवद्गीता पर बहुत सारी भ्रांतियां हैं ।उन सभी पर चर्चा किया जा सकता है।
प्लीज नोट इंटर इन कमेंट बॉक्स स्मैम लिंक

Ad

Blogger द्वारा संचालित.