8. सुरत को जगाने का क्या मतलब है?
धर्मानुरागिनी प्यारी जनता !
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8. "स्वप्न में राजा दरिद्र हो जाता है और दरिद्र इन्द्र बन जाता है; किन्तु जगने पर न तो दरिद्र को कुछ लाभ होता है और न राजा को कोई हानि होती है। जब कोई चौथी अवस्था में जायेगा, तो इस जाग्रत का हानि-लाभ स्वप्न का हो जायेगा। सुरत को जगने के लिये जो कहते हैं, वह तबतक जगती नहीं है, जबतक चौथी अवस्था में नहीं जाए। इसलिए इस जाग्रत अवस्था में भी जगने के लिये कहते हैं। भजन करोगे, तो जागोगे, नहीं तो क्या जागोगे? क्या भजन करो, तो कहा-
चित से शब्द सुनो सखन दे, उठत मधुर धुन राग री।"
प्रभु प्रेमियों ! सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसी महाराज का यह प्रवचन भारत की राजधानी दिल्ली में अ० भा० सन्तमत सत्संग के ६२वें वार्षिक महाधिवेशन के अवसर पर दिनांक ३. ३. १९७० ई० को प्रातः काल में हुआ था। जिसमें उन्होंने उपरोक्त बातें कहा था। महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर के सभी प्रवचनों में कहाँ क्या है? किस प्रवचन में किस प्रश्न का उत्तर है? इसे संक्षिप्त रूप में जानने के लिए 👉यहाँ दवाएँ।
महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर |
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S315 8. सुरत को जगाने का क्या मतलब है? सुरत कैसे जगती है? Soorat kaise lagatee hai?
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
6/01/2024
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