11. ईश्वर के अतिशय प्यारे कौन होतें हैं?
धर्मानुरागिनी प्यारी जनता !
"जैसे चुम्बक से लोहा खींच जाता है और उसमें लग जाता है, परंतु चुम्बक से लोहे को कोई छुड़ा भी सकता है, लेकिन जो भक्त उस आदि शब्द से पकड़ा जाएगा, उसको कोई बज्र भी नहीं छुड़ा सकता। आज तक जितने प्रकार के बम बनते हैं, कोई भी नहीं छुड़ा सकता है।
कोई कहते हैं कि नौ भक्ति में से एक भी कर लो, तो ईश्वर के अतिशय प्यारे बन जाओगे। मैं कहता हूँ कि एक भक्तिवाला अतिशय प्रिय है, तो नवो प्रकार की भक्ति जो करेगा, उसके लिए नौ बार अतिशय जोड़कर देखो, वह कितना प्यारा होगा? भक्त को तो भक्ति करने में न्योछावर हो जाना चाहिए। तुम कुछ भक्ति करना चाहो और कुछ नहीं, तो कैसे भक्त हो? तुम कायर हो। तुमको पुरुषार्थी बनकर सभी भक्ति करनी चाहिए। नवो प्रकार की भक्ति सिलसिले के साथ है, नवो भक्ति करो।"
प्रभु प्रेमियों ! सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसी महाराज का यह प्रवचन मुरादाबाद स्थित श्रीसंतमत सत्संग मंदिर कानून गोयान मुहल्ले में दिनांक १२.४.१९६५ ई० को अपराह्नकालीन सत्संग में हुआ था। जिसमें उन्होंने उपरोक्त बातें कहा था। महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर के सभी प्रवचनों में कहाँ क्या है? किस प्रवचन में किस प्रश्न का उत्तर है? इसे संक्षिप्त रूप में जानने के लिए 👉यहाँ दवाएँ।
महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर |
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S209(ग) 11. ईश्वर के अतिशय प्यारे कौन होतें है || ईश्वर की शक्ति क्या है? What is the power of God?
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
5/16/2024
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प्रभु-प्रेमी पाठको ! ईश्वर प्राप्ति के संबंध में ही चर्चा करते हुए कुछ टिप्पणी भेजें। श्रीमद्भगवद्गीता पर बहुत सारी भ्रांतियां हैं ।उन सभी पर चर्चा किया जा सकता है।
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