13. चेतन आत्मा ही दर्शन ईश्वर दर्शन क्यों करती है?
धर्मानुरागिनी प्यारी जनता !
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"संतों ने साफ कह दिया है। चेतन आत्मा से दर्शन होगा। माया में चेतन आत्मा के रहने से माया का ही दर्शन होता है। इसलिए लोगों को बाहर में ईश्वर का दर्शन नहीं होता। माया को पार कर ईश्वर का दर्शन होता है। जैसे एक ही लालटेन के पाँच पहलों में पाँच रंग के शीशे हों और बीच में मोमबत्ती जलती हो, तो जिस रंग के शीशे होकर वह रोशनी बाहर निकलेगी, वह रोशनी उसी रंग की होगी। अर्थात् लाल शीशा होकर जो रोशनी बाहर निकलेगी, वह लाल और जो हरा शीशा होकर रोशनी बाहर निकलेगी, वह हरी रोशनी होगी। इसी प्रकार पाँचों रंग के शीशे के संबंध में समझिए। किंतु भीतर में जो मोमबत्ती जलती है, उसके प्रकाश का रंग इन पाँचों रंगों से भिन्न ही होता है, यद्यपि पाँचों रंग के शीशों से मोमबत्ती की ही रोशनी निकलती है। इसी तरह पंच ज्ञानेन्द्रियों में यद्यपि चेतन आत्मा के कारण ही ज्ञान है, फिर भी इन्द्रियाँ मायिक होने के कारण मायिक वस्तु को ही ग्रहण कर सकती हैं, निर्मायिक को नहीं। निर्मायिक तत्त्व अर्थात् परमात्मा को चेतन आत्मा ही ग्रहण कर सकती है। अपनी रोशनी में अपने को रखकर ईश्वर-दर्शन करो।"
प्रभु प्रेमियों ! सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसी महाराज का यह प्रवचन मुरादाबाद स्थित श्रीसंतमत सत्संग मंदिर कानून गोयान मुहल्ले में दिनांक १२.४.१९६५ ई० को अपराह्नकालीन सत्संग में हुआ था। जिसमें उन्होंने उपरोक्त बातें कहा था। महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर के सभी प्रवचनों में कहाँ क्या है? किस प्रवचन में किस प्रश्न का उत्तर है? इसे संक्षिप्त रूप में जानने के लिए 👉यहाँ दवाएँ।
महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर |
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S209(ख) 13. चेतन आत्मा ही दर्शन ईश्वर दर्शन क्यों करती है? आत्मा का दर्शन कैसे किया जाता है ?
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
5/14/2024
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प्रभु-प्रेमी पाठको ! ईश्वर प्राप्ति के संबंध में ही चर्चा करते हुए कुछ टिप्पणी भेजें। श्रीमद्भगवद्गीता पर बहुत सारी भ्रांतियां हैं ।उन सभी पर चर्चा किया जा सकता है।
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