S209(ख) 5. ईश्वर-दर्शन क्यों नहीं होता है || व्यक्ति को ईश्वर के दर्शन क्यों नहीं होते? Why can't a person see God?
5. ईश्वर-दर्शन क्यों नहीं होता है?
धर्मानुरागिनी प्यारी जनता !
"भगवान श्रीराम आगे-आगे श्रीलक्ष्मणजी पीछे-पीछे और बीच में सीताजी जाती थीं। गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा-
आगे राम लखन बने पाछें। तापस वेष विराजत काछे ।।
उभय बीच सिय सोहति कैसे। ब्रह्म जीव बिच माया जैसे ।।
यदि बीच से सीताजी हट जाएँ तो राम को लक्ष्मण देख लें। इसी तरह ब्रह्म का दर्शन माया के कारण जीव को नहीं होता है। जो माया के तीनों आवरण को पार करे, तो ईश्वर-दर्शन हो जाएगा। इसी को एक जगह में गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा है-
मायाबस मति मन्द अभागी।
हृदय जवनिका बहु विधि लागी ।।
ते सठ हठ बस संसय करहीं।
निज अज्ञान राम पर धरहीं।।
काम क्रोध मद लोभ रत, गृहासक्त दुख रूप ।
ते किमि जानहिं रघुपतिहिं, मूढ़ पड़े तम कूप ।।
मतलब अंधकार के कुएँ से अपने को निकालो और अंदर के परदों को पार करो, तो राम प्रत्यक्ष होंगे।"
प्रभु प्रेमियों ! सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसी महाराज का यह प्रवचन मुरादाबाद स्थित श्रीसंतमत सत्संग मंदिर कानून गोयान मुहल्ले में दिनांक १२.४.१९६५ ई० को अपराह्नकालीन सत्संग में हुआ था। जिसमें उन्होंने उपरोक्त बातें कहा था। महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर के सभी प्रवचनों में कहाँ क्या है? किस प्रवचन में किस प्रश्न का उत्तर है? इसे संक्षिप्त रूप में जानने के लिए 👉यहाँ दवाएँ।
महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर |
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S209(ख) 5. ईश्वर-दर्शन क्यों नहीं होता है || व्यक्ति को ईश्वर के दर्शन क्यों नहीं होते? Why can't a person see God?
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
5/14/2024
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प्रभु-प्रेमी पाठको ! ईश्वर प्राप्ति के संबंध में ही चर्चा करते हुए कुछ टिप्पणी भेजें। श्रीमद्भगवद्गीता पर बहुत सारी भ्रांतियां हैं ।उन सभी पर चर्चा किया जा सकता है।
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