12. संसार की ओर पीठ कैसे होता है?
धर्मानुरागिनी प्यारी जनता !
"जगत पीठ दै भाग री।'
12. कहाँ भागो ? ऊपर-नीचे, आग-पीछे, दायें-बायें, चारो कोण, दसो दिशाओं में कहीं भागो- 'जगत पीठ' नहीं होगा। संसार की ओर पीठ तब होगी, जैसे अभी जगे हो तो संसार को देखते हो। स्वप्न और सुषुप्ति में इस संसार का ख्याल नहीं रहता है, तो संसार की ओर पीठ होती है।लेकिन घोर अंधकार का जगत तुम्हारे सामने रह जाता है। फिर जगत की ओर पीठ कहाँ हुई? ऐसा करो कि संसार का ज्ञान तुमको नहीं रहे। न जाग्रत में, न स्वप्न में, न सुषुप्ति में, कहीं भी संसार का ज्ञान नहीं रहे।
सकल दृस्य निज उदर मेलि,
सोवइ निद्रा तजि जोगी ।
सोइ हरिपद अनुभवइ परम सुख,
अतिसय द्वैत वियोगी।।
इसपर विचार करो। वह द्वैत-वियोगी पद कैसा है?
सोक मोह भय हरष दिवस निसि,
देस काल तहँ नाहीं ।
तुलसीदास एहि दसाहीन,
संसय निर्मूल न जाहीं ।। "
प्रभु प्रेमियों ! सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसी महाराज का यह प्रवचन भारत की राजधानी दिल्ली में अ० भा० सन्तमत सत्संग के ६२वें वार्षिक महाधिवेशन के अवसर पर दिनांक ३. ३. १९७० ई० को प्रातः काल में हुआ था। जिसमें उन्होंने उपरोक्त बातें कहा था। महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर के सभी प्रवचनों में कहाँ क्या है? किस प्रवचन में किस प्रश्न का उत्तर है? इसे संक्षिप्त रूप में जानने के लिए 👉यहाँ दवाएँ।
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महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर |
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S315 12. संसार की ओर पीठ कैसे होता है? jagat peeth de bhaag re, kaise hota hai,
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
6/01/2024
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