13. सन्तवाणी का पाठ करने से क्या मिलता है?
धर्मानुरागिनी प्यारी जनता !
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13. "इन सब सन्तवाणियों को मिला-मिलाकर पढ़ो। पहले तो पढ़ने-समझने में ही अपने को बड़ा आनन्द मिलता है। करो तो और आनन्द मिलता है। ऐसा न समझो कि संसार में कुछ करना नहीं है। ध्यान का समय तो ऐसा ही है, लेकिन संसार में बेवकूफ बनकर भी रहना नहीं है। विद्या-उपार्जन करो और संसार के काम भी करो। संसार के काम के लिए सन्त लोग कहते हैं कि इस दर्जे में पहुँचोगे- 'आत्मवत् सर्वभूतेषु', तब सारा संसार आत्मवत् होगा। इंगलैंड वा इस देश, उस देश की बात नहीं। सारे संसार के भूत आत्मवत् होंगे, लेकिन चालाकी से नहीं होगा। कबीर साहब कहते हैं-
कोई चतुर न पावे पार, नगरिया बावरी । "
प्रभु प्रेमियों ! सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसी महाराज का यह प्रवचन भारत की राजधानी दिल्ली में अ० भा० सन्तमत सत्संग के ६२वें वार्षिक महाधिवेशन के अवसर पर दिनांक ३. ३. १९७० ई० को प्रातः काल में हुआ था। जिसमें उन्होंने उपरोक्त बातें कहा था। महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर के सभी प्रवचनों में कहाँ क्या है? किस प्रवचन में किस प्रश्न का उत्तर है? इसे संक्षिप्त रूप में जानने के लिए 👉यहाँ दवाएँ।
महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर |
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S315 13. सन्तवाणी का पाठ करने से क्या मिलता है? Benefits of reading Santvani,
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
6/01/2024
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प्रभु-प्रेमी पाठको ! ईश्वर प्राप्ति के संबंध में ही चर्चा करते हुए कुछ टिप्पणी भेजें। श्रीमद्भगवद्गीता पर बहुत सारी भ्रांतियां हैं ।उन सभी पर चर्चा किया जा सकता है।
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