S209(ख) 8. गुरु कैसे मिलतें है? 9. गुरु कैसा होना चाहिए? 10. गुरु की सेवा कैसे करें? . - SatsangdhyanGeeta

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S209(ख) 8. गुरु कैसे मिलतें है? 9. गुरु कैसा होना चाहिए? 10. गुरु की सेवा कैसे करें? .

 8. गुरु कैसे मिलतें है? 9. गुरु कैसा होना चाहिए?  

धर्मानुरागिनी प्यारी जनता !

"कुछ करने के लिए गुरु की खोज करेगा। गुरु खोज करके उसकी सेवा करेगा।   

गुरु सेवा में तल्लीन गुरुसेवी बाबा
गुरु सेवा में तल्लीन गुरुसेवी बाबा

बिना गुरु-सेवा के कोई गुरु से विद्या नहीं ले सकता। अर्जुन के अतिरिक्त द्रोणाचार्य से और किसी ने अधिक विद्या नहीं ली। अर्जुन ने द्रोणाचार्य की बड़ी सेवा की थी। गुरु की सेवा करके लोग बड़े हुए हैं। क्षत्रपति शिवाजी गुरु समर्थ की सेवा अपने से ही करते थे। उनकी देह में तेल लगाते थे, पानी भरते थे आदि। राधास्वामी मत में राय शालिग्राम बहादुर महोदय की सेवा आपलोग जानते ही हैं कि कैसी सेवा उन्होंने की। लेकिन गुरु होना चाहिए, गोरु नहीं। गोरु कहते हैं-गाय-बैल को। गुरु कैसा होना चाहिए?

गुरु नाम है ज्ञान का, शिष्य सीख ले सोइ । 
      ज्ञान मरजाद जाने बिना, गुरु अरु शिष्य न कोइ ।। 
सत्तनाम के पटतरे, देवे को कछु नाहिं ।  
              क्या ले गुरु संतोषिये, हवस रही मन माहिं।। 
मन दीया तिन सब दिया, मन की लार शरीर। 
अब देवे को कछु नहीं, यों कथि कहै कबीर ।। 
तन मन दिया तो क्या भया, निज मन दिया न जाय । 
कह कबीर ता दास से, कैसे मन पतियाय ।। 
तन मन दीया आपना, निज मन ताके संग। 
   कह कबीर निर्भय भया, सुन सतगुरु परसंग ।। 

फिर कहते हैं-

तन मन ताको दीजिये, जाके विषया नाहिं । 
आपा सबही डारिके,  राखे  साहिब माहिं ।। 

     ऐसे गुरु हों तो तन-मन से सेवा क्यों न करो? तन-मन और निज-मन में भेद है। पानी देना और कोई स्थूल सेवा करना तन-मन से सेवा है। तन-मन दो और आत्ममुखी मन भी दो। जब मन अंतर्मुखी होता है, तब वह निज मन कहलाता है। जो गुरु बाहरी सेवा से प्रसन्न होता है और अंतर साधन का ख्याल नहीं रखता, वह तो- हरइ शिष्य धन शोक न हरई। सो गुरु घोर नरक महँ परई ।।  ंजो गुरु बाहर की भी सेवा ले और अंतर साधन भी करावे, वह गुरु है। इस तरह गुरु की सेवा करो। हमारे यहाँ प्रसिद्ध है- 'गुरु करो जान, पानी पीओ छान।'"



 
    प्रभु प्रेमियों ! सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसी महाराज का यह प्रवचन मुरादाबाद स्थित श्रीसंतमत सत्संग मंदिर कानून गोयान मुहल्ले में दिनांक १२.४.१९६५ ई० को अपराह्नकालीन सत्संग में हुआ था।  जिसमें उन्होंने उपरोक्त बातें कहा था। महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर के सभी प्रवचनों में कहाँ क्या है? किस प्रवचन में किस प्रश्न का उत्तर है? इसे संक्षिप्त रूप में जानने के लिए  👉यहाँ दवाएँ। 



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महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर
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S209(ख) 8. गुरु कैसे मिलतें है? 9. गुरु कैसा होना चाहिए? 10. गुरु की सेवा कैसे करें? . S209(ख)  8. गुरु कैसे मिलतें है?    9. गुरु कैसा होना चाहिए?  10. गुरु की सेवा कैसे करें? . Reviewed by सत्संग ध्यान on 5/14/2024 Rating: 5

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