10. आत्ममुखी मन और शरीर मुखी मन क्या है?
प्यारे लोगो !
10. "मन से मन को लगाकर मन स्थिर हो गया , मन से मन मिलकर रहा , तब अन्यत्र नहीं जाता है । ( मन के केन्द्रीय रूप को निज मन - आत्ममुखी मन कहते हैं और उसकी किरणें वा धारा जो समस्त शरीर में फैली हुई है , उसे तन - मन या शरीर - मुखी मन कहते हैं । तन - मन को निज मन में समेटकर केन्द्रित करने को मन से मन को मिलाकर रखना है ) ।। ७ ।।
वर्णन हो चुका है कि शब्द से ही सारे विश्व का तथा उसके पंच मण्डलों का निर्माण और विकास हुआ है , इसीलिए शब्द के विषय में उपर्युक्त रीति से कहा गया है । "
प्रभु प्रेमियों ! सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसी महाराज का यह प्रवचन ग्राम डोभाघाट (जिला पूर्णियाँ) अ० भा० सं० स० विशेषाधिवेशन के अवसर पर दिनांक ५.१२.१६४६ ई० के सत्संग में हुआ था ।जिसमें उन्होंने उपरोक्त बातें कही थी । महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर के सभी प्रवचनों में कहाँ क्या है? किस प्रवचन में किस प्रश्न का उत्तर है? इसे संक्षिप्त रूप में जानने के लिए 👉यहाँ दवाएँ।
महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर |
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S01, 10. आत्ममुखी मन और शरीर मुखी मन क्या है || What is a self-centered mind?
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
5/25/2024
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