1. ईश्वर भक्ति रोचक है या यथार्थ?
"ईश्वर की प्राप्ति ईश्वर की भक्ति से ही होती है। ईश्वर की भक्ति ही ईश्वर की प्राप्ति के लिए सुगम साधन है, यह बात भारत में बहुत प्रसिद्ध है। इसलिए भारत के लोग अधिक-से-अधिक ईश्वर- भक्ति की चर्चा किया करते हैं। बात बिल्कुल यथार्थ है। केवल रोचक नहीं, रोचक होते हुए यथार्थ है। रोचक हो और यथार्थ नहीं हो, तब भी साधु महात्मा, जो ऐसी बात कहते हैं, तो जिस ओर रुचि बढ़ानी चाहिए, बढ़ाते हैं; इसमें तो दोष नहीं है।
ईश्वर-प्राप्ति के लिए ईश्वर-भक्ति रोचक भी है और यथार्थ भी। ईश्वर-भक्ति के लिए ईश्वर का स्वरूप जानना चाहिए। ईश्वर की प्राप्ति के लिए ईश्वर की भक्ति सुगम साधन है, इस बात को जो जानते हैं अथवा इस बात का जिसको ज्ञान है, वे ही ईश्वर-भक्ति में पड़ते हैं। मतलब यह कि ईश्वर-भक्ति के लिए ईश्वर-स्वरूप का ज्ञान अवश्य चाहिए। यदि विश्वास हो कि ईश्वर की स्थिति नहीं है, तो ईश्वर-भक्ति के लिए कोई आग्रह नहीं।
कुछ ज्ञान की आवश्यकता पहले होती है; क्योंकि बिना जाने क्या कर सकते हैं? अर्थात् कुछ नहीं कर सकते हैं। किसी महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर, प्रवचन नंबर 209, मुरादाबाद १२.४.१९६५ ई०प्रकार कुछ जानना बहुत आवश्यक है। इसलिए यह बहुत कहने योग्य है कि ईश्वर-भक्ति के लिए ईश्वर-स्वरूप का ज्ञान होना चाहिए। किसी विषय के लिए हो, यदि अपने लिए हितकर होता है तो उस विषय की ओर एक आकर्षण-सा होता है।"
( महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर, प्रवचन नंबर 209, मुरादाबाद १२.४.१९६५ ई० )
महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर |
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