3. क्या अवतारी भगवान् का शरीर मनुष्यों के जैसा नहीं होता है?
धर्मानुरागिनी प्यारी जनता !
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3. "एक साधु ने मुझसे पत्र लिखकर कहा- 'तुम राम को मनुष्य मानते हो, इसलिए तुमने राम की निन्दा की है।' संयोगवश जिस दिन मैं यहाँ आ रहा था, वे मुझसे मिलने आश्रम आ गये। मैंने कहा, आप आ गए, यह आपने बहुत कृपा की। मेरी यात्रा उत्तम हो गयी। मैंने उनसे कहा-राम की निन्दा कौन कर सकता है?
राम ब्रह्म परमारथ रूपा । अविगत अलख अनादि अनूपा ।।भगत हेतु भगवान प्रभु, राम धरेउ तनु भूप ।
किये चरित पावन परम, प्राकृत नर अनुरूप ।।
राम ने भूप का या नर-शरीर को धारण किया। नर-शरीर को नर-शरीर अवश्य कहा जाएगा और जिसने शरीर धारण किया, उन्हें राम अवश्य कहा जाएगा। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ का वर्णन किया है। उन्होंने कहीं नहीं कहा कि क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ में भेद नहीं है, बल्कि उन्होंने यह कहा- सब क्षेत्रों में क्षेत्रज्ञ मैं हूँ। केवल क्षेत्र की महिमा कही जाय और क्षेत्रज्ञ की महिमा नहीं कही जाय, ऐसी बात कहने से अपने को भटकाना है।"
प्रभु प्रेमियों ! सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसी महाराज का यह प्रवचन नालन्दा जिलान्तर्गत भगवान महावीर और भगवान बुद्ध के विहार स्थल राजगीर में ५८वाँ अखिल भारतीय संतमत सत्संग का विशेषाधिवेशन दिनांक २८.१०.१९६६ ई० के अपराह्नकालीन सत्संग में हुआ था। जिसमें उन्होंने उपरोक्त बातें कही थी । महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर के सभी प्रवचनों में कहाँ क्या है? किस प्रवचन में किस प्रश्न का उत्तर है? इसे संक्षिप्त रूप में जानने के लिए 👉यहाँ दवाएँ।
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महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर |
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S246, 3. क्या अवतारी भगवान् का शरीर मनुष्यों के जैसा नहीं होता || Kshetr aur Kshetragy ka gyaan
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
5/26/2024
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