S246, 6. जाग्रत स्वप्न और आज्ञाचक्र में जीव कैसे चलता है? Jaagrat svapn aur Aagyaachakr - SatsangdhyanGeeta

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S246, 6. जाग्रत स्वप्न और आज्ञाचक्र में जीव कैसे चलता है? Jaagrat svapn aur Aagyaachakr

6. अन्तज्योंति और अन्तर्नाद का द्वार कहाँ है? 

धर्मानुरागिनी प्यारी जनता ! 

महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर S246
महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर S246

      6. "जाग्रत में आप जहाँ रहते हैं, स्वप्न में आप वहाँ नहीं रहते। कण्ठ से स्वर का उच्चारण होता है। स्वर के बिना व्यंजन का उच्चारण नहीं हो सकता। प्रत्येक व्यंजन के साथ स्वर अवश्य रहता है। स्वर से व्यंजन हटाकर बोलिए, तो बोल नहीं सकते। स्वप्न में जब हम बोलते हैं, तो हमको जानना चाहिए कि हम कण्ठ में हैं। दसवें द्वार को योगियों के यहाँ आज्ञाचक्र कहा जाता है। यही है अन्तज्योंति और अन्तर्नाद का द्वार।"

    प्रभु प्रेमियों ! सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसी महाराज का यह प्रवचन नालन्दा जिलान्तर्गत भगवान महावीर और भगवान बुद्ध के विहार स्थल राजगीर में ५८वाँ अखिल भारतीय संतमत सत्संग का विशेषाधिवेशन दिनांक २८.१०.१९६६ ई० के अपराह्नकालीन सत्संग में हुआ था। जिसमें उन्होंने उपरोक्त बातें कही थी । महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर के सभी प्रवचनों में कहाँ क्या है? किस प्रवचन में किस प्रश्न का उत्तर है? इसे संक्षिप्त रूप में जानने के लिए  👉यहाँ दवाएँ। 



सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज के विविध विषयों पर विभिन्न स्थानों में दिए गए प्रवचनों का संग्रहनीय ग्रंथ महर्षि मेंहीं सत्संग-सुधा सागर
महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर
     प्रभु प्रेमियों ! उपरोक्त प्रवचनांश  'महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर"' से ली गई है। अगर आप इस पुस्तक से महान संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस  जी महाराज के  अन्य प्रवचनों के बारे में जानना चाहते हैं या इस पुस्तक के बारे में विशेष रूप से जानना चाहते हैं तो    👉 यहां दबाएं।

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S246, 6. जाग्रत स्वप्न और आज्ञाचक्र में जीव कैसे चलता है? Jaagrat svapn aur Aagyaachakr S246,  6. जाग्रत स्वप्न और आज्ञाचक्र में जीव कैसे चलता है? Jaagrat svapn aur Aagyaachakr Reviewed by सत्संग ध्यान on 5/26/2024 Rating: 5

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