2. सुरत किसे कहते हैं?
धर्मानुरागिनी प्यारी जनता !
2. "सुरत के कई अर्थ हैं। उसकी एक परिभाषा है। कबीर साहब के पन्थ के ग्रन्थ में एक चौपाई है। सन्त कबीर साहब एक अक्षर भी पढ़े-लिखे नहीं थे। उनके नाम से जो ग्रन्थ मिलते हैं, उनमें से एक में लिखा है कि-
आदि सुरत सतपुरुष तें आई। जीव सोहं बोलिये सो ताई ।।
जिनको आप सच्चिदानन्द ब्रह्म कहते हैं, उसी को कबीर साहब सत्पुरुष कहते हैं। जिस पुस्तक का नाम अनुराग सागर है, उसी में यह है। सुरत का अर्थ ख्याल भी होता है; सुरत का अर्थ तुलसीदासजी ने स्मरण भी किया है।
रहत न प्रभु चित चूक किये की।
करत सुरत सै बार हिये की ।।
यह मैं बारम्बार का ख्याल करता हूँ। मेरे जानते परमात्मा परम उदार हैं, महादाता हैं; महाक्षमा-कर्त्ता हैं। यहाँ सुरत का अर्थ स्मरण करना हो जाता है। इसको दूसरी-दूसरी तरह से भी इस्तेमाल करते हैं। "
प्रभु प्रेमियों ! सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसी महाराज का यह प्रवचन भारत की राजधानी दिल्ली में अ० भा० सन्तमत सत्संग के ६२वें वार्षिक महाधिवेशन के अवसर पर दिनांक ३. ३. १९७० ई० को प्रातः काल में हुआ था। जिसमें उन्होंने उपरोक्त बातें कहा था। महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर के सभी प्रवचनों में कहाँ क्या है? किस प्रवचन में किस प्रश्न का उत्तर है? इसे संक्षिप्त रूप में जानने के लिए 👉यहाँ दवाएँ।
महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर |
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S315 2. सुरत किसे कहते हैं? 3. सुरत, ख्याल और स्मरण के बारीक अर्थ को समझें What is called Surat?
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
6/01/2024
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