S209(क) 6 ईश्वर कैसा है, ईश्वर कैसा होता है || ishwar kaisa dikhta hai, hwar kaisa hota hai, - SatsangdhyanGeeta

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S209(क) 6 ईश्वर कैसा है, ईश्वर कैसा होता है || ishwar kaisa dikhta hai, hwar kaisa hota hai,

6 . ईश्वर कैसा है? 

धर्मानुरागिनी प्यारी जनता !

भगवान् के विविध रूप
भगवान् के विविध रूप

"कबीर साहब ने कहा है कि ईश्वर के अतिरिक्त पहले कुछ नहीं था।

     प्रथम एक सो आपे आप, निराकार निर्गुण निर्जाप। वह (परमात्मा) कभी बन गया है, ऐसा नहीं। किसी कारण से वह हुआ, सो भी नहीं। कबीर साहब ने एक बड़ी बात कही है-

     मूल न फूल बेलि नहीं बीजा, बिना वृक्ष फल सोहै। न उसकी जड़ है, न फूल है, न लता है और न बीज है; केवल फल-ही-फल है। उसको किस रंग-रूप में जानें? तो कहा- 'निराकार निर्गुण निर्जाप।' कोई आकार नहीं, रज, सत, तम कोई गुण नहीं अर्थात् त्रयगुणातीत वह है। इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कहा था- 'निस्त्रैगुण्यो भवार्जुन।'

     गोस्वामी तुलसीदासजी से पूछिए, तो वे कहेंगे- 'अगुण अखण्ड अलख अज' है। तुलसीदासजी ने सगुण रूप के बहुत गुण-गान किए हैं और उन्होंने सगुण होने का कारण भी बताया है- 'भगत प्रेमवश सगुण सो होई।' बाबा नानक से पूछिए तो वे कहेंगे- अलख़ अपार अगम अगोचरि, ना तिसु काल न करमा।। अपार अर्थात् आदि-अंत-रहित। और संत लोग भी यही बात कहते हैं। उपनिषद् भी संतवाणी है। वेद-वाक्य के तुल्य उसका वाक्य माना जाता है। उसमें है-

वायुर्यथैको भुवनं प्रविष्टो रूपं रूपं प्रतिरूपो बभूव । 
एकस्तथा सर्वभूतान्तरात्मा रूपं रूपं प्रतिरूपो बहिश्च ।।
                                                               - कठोपनिषद्

     अर्थात् जिस प्रकार इस लोक में प्रविष्ट हुआ वायु प्रत्येक रूप के अनुरूप हो रहा है, उसी प्रकार सम्पूर्ण भूतों का एक ही अंतरात्मा प्रत्येक रूप के अनुरूप हो रहा है और उनसे बाहर भी है। सबसे बाहर होने पर प्रकृति से भी बाहर हो जाता है। इसीलिए 'प्रकृति पार प्रभु सब उरवासी। ब्रह्म निरीह विरज अविनाशी ।।' और दूसरी जगह-

राम स्वरूप तुम्हार, वचन अगोचर बुद्धि पर। 
अविगत अकथ अपार, नेति नेति नित निगम कह ।।

     सगुण का अर्थ जो गुण के सहित है। जो गुण के सहित होता है, वह सगुण होता है और जब गुण को नहीं लेता है, वह निर्गुण है। निर्गुण जो सगुण होता है, तो क्या वह पूर्ण का पूर्ण सगुण हो जाता है? अभी सुना- 'राम स्वरूप तुम्हार, वचन अगोचर बुद्धि पर। अविगत अकय अपार, नेति नेति नित निगम कह ।।' अपार को कोई दूसरा 'अपार' हो तो सम्पूर्ण को ढँक ले। लेकिन 'अपार' दो नहीं हो सकते। इसलिए गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा- 

उमा राम विषयक अस मोहा। 
नभ तम धूम धूरि जिमि सोहा ।। 
जथा गगन धन पटल निहारी। 
झाँपेउ भानु कहेहु कुविचारी।।

     एक ही समय में कहीं बादल रहता है और कहीं सूर्य दीखता है। मतलब यह कि बादल का कितना बड़ा समूह भी सूर्य को ढँक नहीं सकता। बादल समूह को ऊपर करते जाओ तो रास्ते में ही बादल बिला जाएगा और सूर्य दीखने लगेगा। इसी तरह ईश्वर के सम्पूर्ण रूप को माया वा सगुण ढँक नहीं सकता है। उसके अल्पाति-अल्प भाग को ढँक सकता है। लेकिन त्रयगुण आवरण के अंदर होने पर भी उसकी शक्ति घटती नहीं। दोनों हालतों में-निर्गुण रूप वा सगुण रूप में पूर्ण शक्ति है। आकाश में कुछ दूर तक धूल है, कुछ दूर तक धुआँ है और कुछ दूर तक अंधकार है। धूल, धूम और अंधकार से शून्य साफ-साफ देखा नहीं जाता और शून्य को पूरा-पूरा ये ढक नहीं सकते। इसको पार करो तो शून्य को ठीक-ठीक देख सकोगे। इसी तरह स्थूल, सूक्ष्म और कारण; इन तीनों को पार करो तो स्वरूप को देख सकते हो।"


(महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर, प्रवचन नंबर 209, मुरादाबाद १२.४.१९६५ ई० ) 

     प्रभु प्रेमियों ! सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसी महाराज का यह प्रवचन मुरादाबाद स्थित श्रीसंतमत सत्संग मंदिर कानून गोयान मुहल्ले में दिनांक १२.४.१९६५ ई० को अपराह्नकालीन सत्संग में हुआ था।  जिसमें उन्होंने उपरोक्त बातें कहें थे। महर्षि मेँहीँ सत्संग सुधा सागर के सभी प्रवचनों में कहाँ क्या है? किस प्रवचन में किस प्रश्न का उत्तर है? इसे संक्षिप्त रूप में जानने के लिए  👉यहाँ दवाएँ। 



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महर्षि मेँहीँ सत्संग-सुधा सागर
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S209(क) 6 ईश्वर कैसा है, ईश्वर कैसा होता है || ishwar kaisa dikhta hai, hwar kaisa hota hai, S209(क)   6 ईश्वर कैसा है,  ईश्वर कैसा होता है ||  ishwar kaisa dikhta hai, hwar kaisa hota hai, Reviewed by सत्संग ध्यान on 5/13/2024 Rating: 5

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