श्रीगीता-योग-प्रकाश / 6 (घ)
प्रभु प्रेमियों ! धर्म शास्त्रों में लिखा है- "भारतामृतसर्वस्वं विष्णोर्वक्त्राद्विनि:सृतम् । गीतागड्रोदक॑ पीत्वा पुनर्ज्म न विद्यते॥५॥" जो महाभारतका अमृतोपम सार है तथा जो भगवान् श्रीकृष्णके मुखसे प्रकट हुआ है, उस गीतारूप गंगाजलको पी लेनेपर पुन: इस संसारमें जन्म नहीं लेना पड़ता॥५॥ "सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दन:ः । पार्थों वत्सः सुधीर्भोक्ता दुग्धं॑ गीतामृतं॑ महतू॥६॥" सम्पूर्ण उपनिषदें गौ के समान हैं, गोपालनन्दन श्रीकृष्ण दुहनेवाले हैं, अर्जुन बछड़ा है तथा महान् गीतामृत ही उस गौका दुग्ध है और शुद्ध बुद्धिवाला श्रेष्ठ मनुष्य ही इसका भोक्ता है॥६॥
इस लेख में बताया गया है Shaastron mein naasaagr kee charcha kis tarah kee gaee hai? paribhaasha ke anusaar bindu kise kahate hain? bindu dhyaan ke pahale kya karana chaahie? bindu praapt hone par kya hota hai? bindu dhyaan ke baare mein sant-mahaatmaon ke vichaar kya hai? naasaagr ka sahee arth kya hai? yogaabhyaas ke kitane ang hote hain? samaadhi kise kahate hain? upanishadon mein saamaadhi ke baare mein kya kaha gaya hai? इत्यादि बातों साथ-साथ निम्नांकित सवालों के भी कुछ-न-कुछ का समाधान अवश्य पाएंगे। जैसे- ध्यान योग का सही स्वरूप क्या है, ध्यान योग में नासाग्र कहां है, ध्यान योग विशेष है या अन्य हठयोग, ध्यान का समय, गीता के अनुसार ध्यान, गीता क्या है, संपूर्ण गीता ज्ञान, भगवत गीता का ज्ञान, गीता में ध्यान, ध्यान योग, ध्यान योग के प्रकार, ध्यान के आसन, गीता मोक्ष, ध्यान योग कैसे करे, Dhyan Yog in Hindi, ध्यान कैसे करना है, ध्यान करने के लिए सबसे उपयुक्त आसन कौन सा है, ध्यान आसन क्या है, योग और ध्यान में क्या अंतर है, ध्यान योग के प्रकार, ध्यान योग कैसे करे, ध्यान योग के फायदे, ध्यान योग विधि, ध्यान क्रिया, ध्यान साधना, भगवद गीता ध्यान योग, ध्यान की व्याख्या, इत्यादि बातें । इन बातों को समझने के पहले आइए गुरु महाराज के दर्शन करें।
श्रीगीता-योग-प्रकाश के अध्याय 6 (ग) को पढ़ने के लिए यहां दवाएं।
सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज इस अध्याय में कहते हैं How is Nasagra discussed in the scriptures? What is a point by definition? What should be done before point meditation? What happens when the point is received? What are the thoughts of saint-mahatmas about dhyana meditation? What is the true meaning of nasal? How many parts does yoga practice? What is samadhi? What has the Upanishads said about Samadhi?आदि बातें । आइए उनकेे विचार पढ़ते हैं-
अध्याय ६
अथ ध्यानयोग
इस अध्याय का विषय ध्यानयोग है ।
....' " तेजोविन्दुः परं ध्यानं विश्वात्महृदि संस्थितम् ॥१ ॥ ( तेजोविन्दूपनिषद् )
अर्थ - हृदयस्थित विश्वात्म तेजस् - स्वरूप विन्दु का ध्यान परम ध्यान है ||१।।
श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान के अणु - से - अणु रूप का निर्देश है ।
"कवि पुराणमनुशासितारमणोरणीयांसमनुस्मरेद्यः । सर्वस्य धातारमविन्त्यरूपमादित्यवर्णं तमसः परस्तात् ।। ( गीता , अध्याय ८ , श्लोक ९ )
मनुस्मृति के अध्याय १२ , श्लोक १२२ में यही अणोरणीयाम् विन्दु है ।
"प्रशासितारं सर्वेषामणीयांसमणेरपि । रूक्माभं स्वप्नधीगम्यं विद्यात्तं पुरुष परम् ॥
अर्थ - जो सबका शासन करनेवाला , अणु से भी अति सूक्ष्म स्वर्ण के समान कान्तिवाला , स्वप्नावस्था के सदृश बुद्धि से जानने योग्य है , उस परम पुरुष को जानें ।
परिभाषा के अनुकूल विन्दु का मानव रूप वा कल्पित रूप नहीं बनता है । यह देखने के कौशल से प्रत्यक्ष देखा जाता है । इसी एकविन्दुता वा विन्दुध्यान के लिए श्रीमद्भागवत के स्कन्ध ११ , अध्याय १४ के नीचे लिखे श्लोकों में क्रम - क्रम से शून्य - ध्यान का वर्णन है ।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यो मनसाऽकृष्य तन्मनः । बुद्ध्या सारथिना धीरः प्रणयेन्मयि सर्वतः ॥४२ ॥ तत्सर्वव्यापकं चित्तमाकृष्यैकत्र धारयेत् । नान्यानि चिन्तयेद् भूयः सुस्मितं भावयेन्मुखम् ॥४३ ॥ तत्र लब्धपदं चित्तमाकृष्य व्योम्नि धारयेत् । तच्च त्यक्त्वा मदारोहो न किञ्चदपि चिन्तयेत् ॥४४ ॥
अर्थ - बुद्धिमान पुरुष को चाहिए कि मन के द्वारा इन्द्रियों को उनके विषयों से खींचकर , उस मन को बुद्धिरूपी सारथी की सहायता से सर्वांगयुक्त मुझमें ही लगा दे।॥४२ ॥ सब ओर से फैले हुए चित्त को खींचकर एक स्थान में स्थिर करे और अन्य अंगों का चिन्तन न करता हुआ केवल मेरे मुस्कान - युक्त मुख का ही ध्यान करे ॥४३ ॥ मुखारविन्द में चित्त के स्थिर हो जाने पर उसे वहाँ से हटाकर आकाश में स्थिर करे । तदन्तर उसको भी त्यागकर मेरे शुद्ध स्वरूप में आरूढ़ हो और कुछ भी चिन्तन न करे।॥४४ ॥
इस ध्यानाभ्यास के बारे में उपनिषद् एवं सन्तवाणियों के ये कतिपय पद्य हैं
बीजाक्षरं परं विन्दु नादं तस्योपरि स्थितम् । सशब्दं चाक्षरे क्षीणे निःशब्दं परमं पदम् ।। २ ।।
अर्थ - परम विन्दु ही बीजाक्षर है , उसके ऊपर नाद है । नाद जब अक्षर ( अनाशी ब्रह्म ) में लय हो जाता है , तो निःशब्द परम पद है । ( ध्यानविन्दूपनिषद् , श्लोक २ )
शून्य ध्यान सबके मन माना ।"
" गगन की ओट निशाना है ।
दहिने सूर चन्द्रमा बायें , तिनके बीच छिपाना है ।"
"गगन मण्डल के बीच में , तहवाँ झलके नूर ।"
"जो कोइ निर्गुण दर्शन पावै । प्रथमे सुरति जमावै तिल पर , मूल मंत्र गहि लावै ॥"
"मेरे नजर में मोती आया है । है तिल के तिल के तिल भीतर , बिरले साधू पाया है ।" ( कबीर साहब )
"गगनंतरि गगन गवनि करि फिरै । जाय त्रिवेणी मजनु करै ॥"
" गगनि निवासि आसणु जिसु होई । नानक कहे उदासी सोई ।" " भ्रम भै मोह न माइआ जाल । सुन्न समाधि प्रभू किरपाल ।" ( ग्रन्थ साहब , गुरु नानक )
"चढे गगन आकास गरजे द्वार दसम निकासन । विन्दु में तहँ नाद बोले रैन दिवस सुहावन ।।" ( पलटू साहब )
"स्रुति ठहरानी रहे अकासा । तिल खिरकी में निसदिन वासा ॥" ( तुलसी साहब )
नासाग्र और विन्दु वा अणोरणीयाम् के विषय में उक्त बातों की जानकारी के बाद समाधि के विषय में भी जानकारी होनी चाहिए । श्रीमद्भगवद्गीता के ज्ञान का सार विषय , कर्मयोग - द्वारा परमात्म - प्राप्ति और मोक्ष - लाभ करना है । अनेक जानकार ऐसा बतलाते हैं ओर भगवद्गीता का कहना है कि कर्मयोगी को स्थितप्रज्ञ होना चाहिए और स्थितप्रज्ञता समाधि में प्राप्त होती है । अतएव यह अवश्य ही जानना चाहिए कि समाधि किसे कहते है ? योगाभ्यायास*
के अन्तिम अंग को समाधि कहते हैं । इसमें पूर्ण सफल होने पर अभ्यासी पूर्ण योगी होता है । मुक्तिकोपनिषद् में समाधि की निम्नलिखित स्थितियाँ बतलायी गई हैं
ब्रह्माकारमनोवृत्तिप्रवाहोऽहंकृतिं विना । संप्रज्ञातसमाधिः स्याद्ध्यानाभ्यासप्रकर्षतः।।५३ ॥
प्रशान्तवृत्तिकं चित्तं परमानन्ददायकम् । असंप्रज्ञातनामायं समाधिर्योगिनां प्रियः ॥५४ ॥
प्रभाशून्यं मनःशून्यं बुद्धिशून्यं चिदात्मकम् । अतद्व्यावृत्तिरूपोऽसौ समाधिर्मुनि भावितः ॥५५ ॥
ऊर्ध्वपूर्णमधः पूर्णं मध्यपूर्ण शिवात्मक् । साक्षाद्विधिमुखो ह्येष समाधिः पारमार्थिकः ॥५६ ॥
अर्थ - जब अहंकारवृत्ति निरुद्ध होकर केवल ब्रह्माकार में चित्त की वृत्ति होकर रहती है , तब इसको संप्रज्ञात समाधि कहते हैं । यह अतिशय ध्यानाभ्यास से होती है।॥५३ ॥ जब चित्त की सब वृत्तियाँ प्रशान्त हो जाएँगी , उसी अवस्था का नाम असंप्रज्ञात समाधि है । वह योगियों को प्रिय है ॥५४ ॥ ज्योति , मन तथा बुद्धि - रहित होकर केवल चैतन्य आत्मा ही रहे , यह अतद्व्यावृत्ति ( जिसको किसी दूसरे की आवश्यकता न हो ) समाधिस्थ मुनियों से अभिलषित है ॥५५ ॥ ( इस समाधि में ) ऊपर , नीचे और मध्य ; | सर्वत्र कल्याणकारी ब्रह्म की परिपूर्णता की अनुभूति होती है । विधिमुख ( कथित ) यह पारमार्थिक समाधि है ।।५६ ।। समाधि की इन स्थितियों में बाह्य ज्ञानविहीन होकर रहना होता है । नादविन्दूपनिषद् में भी कहा है
" शंखदुन्दुभिनादं च न शृणोति कदाचन । काष्ठवज्ज्ञायते देह उन्मन्यवस्थया ध्रुवम् ॥ ५२ ॥.... क्रमशः ।।
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द्रष्टव्य - रेखांकित वाणी में विन्दु - ध्यान का संकेत है ।
* इसके आठ अंग हैं- ( १ ) यम , ( २ ) नियम , ( ३ ) आसन , ( ४ ) प्राणायाम , ( ५ ) प्रत्याहार , ( ६ ) धारणा , ( ७ ) ध्यान और ( ८ ) समाधि ।
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प्रेमियों ! आप लोगों ने गुरु महाराज कृत "श्री गीता योग प्रकाश" के तीसरे अध्याय में जाना कि शास्त्रों में नासाग्र की चर्चा किस तरह की गई है? परिभाषा के अनुसार बिंदु किसे कहते हैं? बिंदु ध्यान के पहले क्या करना चाहिए? बिंदु प्राप्त होने पर क्या होता है? बिंदु ध्यान के बारे में संत-महात्माओं के विचार क्या है? नासाग्र का सही अर्थ क्या है? योगाभ्यास के कितने अंग होते हैं? समाधि किसे कहते हैं? उपनिषदों में सामाधि के बारे में क्या कहा गया है? इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका याक्ष कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस लेख का पाठ निम्न वीडियो में किया गया है । इसे अवश्य देखें।
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G06 (घ) विंदु ध्यान या नासाग्र में कैसे देखते है, इसे अच्छी तरह समझें ।। Bhagavad Gita- 6th Chapter
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
7/30/2018
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प्रभु-प्रेमी पाठको ! ईश्वर प्राप्ति के संबंध में ही चर्चा करते हुए कुछ टिप्पणी भेजें। श्रीमद्भगवद्गीता पर बहुत सारी भ्रांतियां हैं ।उन सभी पर चर्चा किया जा सकता है।
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