श्रीगीता-योग-प्रकाश
प्रभु प्रेमियों ! ' श्रीगीता - योग - प्रकाश ' सब श्लोकों के अर्थ वा उनकी टीकाओं की पुस्तिका नहीं है । श्रीगीता के सही तात्पर्य को समझने के लिए जो दृष्टिकोण चाहिए , वही इसमें दरसाया गया है ।
श्रीगीता-योग-प्रकाश की महत्वपूर्ण बातें
प्रभु प्रेमियों ! ' योग ' शब्द का अर्थ ' युक्त होना ' है । अर्जुन विषाद युक्त हुआ , इसी का वर्णन प्रथम अध्याय में है , इसीलिए उस अध्याय का नाम ' विषादयोग ' हुआ । जिस विषय का वर्णन करके श्रोता को उससे युक्त किया गया , उसको तत्संबंधी योग कहकर घोषित किया गया । अध्याय २ के श्लोक ४८ में कहा गया है - ' समत्वं योग उच्यते ' अर्थात् समता का ही नाम ' योग ' है । इससे स्पष्ट हो जाता है कि यहाँ ' योग ' शब्द का अर्थ समता है । पुनः उसी अध्याय के श्लोक ५० में कहा गया है - ' योगः कर्मसु कौशलम् ' अर्थात् कर्म करने की कुशलता या चतुराई को योग कहते हैं । यहाँ ' योग ' शब्द उपर्युक्त अर्थों से भिन्न , एक तीसरे ही अर्थ में प्रयुक्त हुआ है । अतएव गीता के तात्पर्य को अच्छी तरह समझने के लिए ' योग ' शब्द के भिन्न - भिन्न अर्थों को ध्यान में रखना चाहिए ।
गीता स्थितप्रज्ञता को सर्वोच्च योग्यता कहती है और उसकी प्राप्ति का मार्ग बतलाती है । स्थितप्रज्ञता , बिना समाधि के सम्भव नहीं है । इसीलिए गीता के सभी साधनों के लक्ष्य को समाधि कहना अयुक्त नहीं है । इन साधनों में समत्व - प्राप्ति को बहुत ही आवश्यक बतलाया गया है । समत्व - बुद्धि की तुलना में केवल कर्म बहुत तुच्छ है । ( गीता २ / ४ ९ ) इसलिए समतायुक्त होकर कर्म करने को कर्मयोग कहा गया है । यही ' योगः कर्मसु कौशलम् ' है । अर्थात् कर्म करने की कुशलता को योग कहते हैं । कर्म करने का कौशल यह है कि कर्म तो किया जाय ; परन्तु उसका बंधन न लगने पावे । यह समता पर निर्भर करता है । गीता न सांसारिक कर्तव्यों के करने से हटाती है और न कर्मबंधन में रखती है । समत्व - योग प्राप्त कर स्थितप्रज्ञ बन , कर्म करने की कुशलता या चतुराई में दृढ़ारूढ़ रह , कर्तव्य कर्मों के पालन करने का उपदेश गीता देती है ।
प्रभु प्रेमियों ! "श्रीगीता-योग-प्रकाश " पुस्तक निम्नलिखित चित्र के जैसा प्रकाशित हुआ है और इसके विशष-सूची इत्यादि नीचे दिए जाते हैं-
अनुक्रमणिका
अध्याय विषय
प्रकाशकीय
महर्षिजी का परिचय
भूमिका
१. अथ अर्जुन विषादयोग
२. अथ सांख्ययोग
३. अथ कर्मयोग
४. अथ ज्ञानकर्म - संन्यासयोग
५. अथ कर्म - संन्यासयोग
७. अथ ज्ञान - विज्ञानयोग
८. अथ अक्षर ब्रह्मयोग
९ . अथ राजविद्या - राजगुह्ययोग
१०. अथ विभूतियोग
११. अथ विश्वरूपदर्शनयोग
१२. अथ भक्तियोग
१४. अथ गुणत्रयविभागयोग
१५. अथ पुरुषोत्तमयोग
१६. अथ देवासुर संपद्विभागयोग
१७. अथ श्रद्धात्रय - विभागयोग
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प्रभु प्रेमियों ! समाधि - साधन के लिए जिन योगों की आवश्यकता है , उन सबका समावेश गीता में है । गीताशास्त्र के ज्ञानयोग , ध्यानयोग , प्राणायामयोग , जपयोग , भक्तियोग , कर्मयोग आदि सभी योगों की भरपूर उपादेयता है । सब एक - दूसरे से सम्बद्ध हैं और इस तरह सम्बद्ध हैं , जैसे माला की मणिकाएँ । अब अगर कोई कहे कि अमुक योग के अभ्यास करने का युग नहीं है , तो मानना पड़ेगा कि उनकी यह कथनी गीतोपदेश के विरुद्ध है । अन्य कोई कहे तो कहे , मगर कहनेवाले यदि भारत के उत्तम पुरुषों में से कोई हों और भारत के अध्यात्म जगत् की सर्वोत्तम उपाधि से विभूषित हों यानी ' सन्त ' कहलाते हों , तो स्थिति और गम्भीर हो जाती है । ये सन्त यदि कहें कि ' मेरे जीवन में गीता ने जो - जो स्थान पाया है , उसका मैं शब्दों में वर्णन नहीं कर सकता हूँ । गीता का मुझपर अनन्त उपकार है । मेरा शरीर माँ के दूध पर जितना पला है , उससे कहीं अधिक मेरा हृदय व बुद्धि दोनों गीता से पोषित हुए हैं । मैं प्रायः गीता के ही वातावरण में रहता हूँ , गीता यानी मेरा प्राण तत्त्वा ' और फिर वे ही अगर कहें कि ' अब ध्यान योग अभ्यास करने का युग नहीं है , तो स्थिति गम्भीरतम हो जाती है । और यही विदित होता है कि देश का अमंगलकाल ही चला आया है ।
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MS01 . सत्संग - योग ( चारो भाग ) MS02 . रामचरितमानस - सार सटीक, MS03 . वेद दर्शन - योग, MS04 . विनय - पत्रिका - सार सटीक, MS05 . श्रीगीता - योग - प्रकाश, भारती (हिन्दी), MS05a . श्री गीता-योग-प्रकाश (अंग्रेजी अनुवाद), MS06 . संतवाणी सटीक MS07 . महर्षि मॅहीं - पदावली MS08 . मोक्ष दर्शन भारती (हिन्दी), MS08a . मोक्ष दर्शन अंग्रेजी अनुवाद, MS09 . ज्ञान - योग - युक्त ईश्वर भक्ति , MS10 . ईश्वर का स्वरूप और उसकी प्राप्ति, . MS11 . भावार्थ - सहित घटरामायण - पदावली , MS12 . सत्संग - सुधा , प्रथम भाग, MS13. सत्संग सुधा , द्वितीय भाग, MS14 . सत्संग - सुधा , तृतीय भाग, MS15 . सत्संग - सुधा , चतुर्थ भाग, MS16. राजगीर हरिद्वार दिल्ली सत्संग, MS17 . महर्षि मेंहाँ - वचनामृत , प्रथम खंड, MS18 . महर्षि मेंहीं सत्संग - सुधा सागर भाग 1, MS19 . महर्षि मेंहीं सत्संग - सुधा सागर भाग 2,
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