G17 आहार-विहारानुसार सतोगुणी, रजोगुणी और तमोगुणी श्रद्धाएँ ।। Bhagwat Geeta- 17tin Chapter - SatsangdhyanGeeta

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G17 आहार-विहारानुसार सतोगुणी, रजोगुणी और तमोगुणी श्रद्धाएँ ।। Bhagwat Geeta- 17tin Chapter

श्रीगीता-योग-प्रकाश / 17

प्रभु प्रेमियों ! भारत ही नहीं, वरंच विश्व-विख्यात श्रीमद्भागवत गीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा गाया हुआ गीत है। इसमें 700 श्लोक हैं तथा सब मिलाकर 9456 शब्द हैं। इतने शब्दों की यह तेजस्विनी पुस्तिका भारत की आध्यात्म-विद्या की सबसे बड़ी देन है। संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "श्रीगीता-योग-प्रकाश" इसी पुस्तिका के बारे में फैले हुए सैकड़ों भ्रामक विचारों को दूर करने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें सभी श्लोकों के अर्थ और उनकी टीका नहीं है। गीता के सही तात्पर्य को समझने के लिए जो दृष्टिकोण, साधनानुभूति-जन्य ज्ञान, संतवाणीी-सम्मत और गुरु ज्ञान से मेल खाते वचन चाहिए, वही इसमें दर्शाया गया है।

इस पोस्ट में  श्रद्धात्रय-विभाग योग क्या है? श्रद्धा कितने तरह की होती है? सात्विक, राजस और तामस श्रद्धा वाले लोगों के क्या लक्षण हैं? भोजन कितने प्रकार के होते हैं? आहार का मनुष्य शरीर पर क्या असर होता है? सात्विक व्यक्ति को कैसा आहार लेना चाहिए? राजसी और तामसी आहार कैसे होते हैं?  यज्ञ कितने प्रकार के होते हैं? तप किसे कहते हैं ? तप कितने प्रकार का होता है? सात्विक राजस और तामस दान क्या है?  आदि बातों के बारे में बताया गया है। इसके साथ-ही-साथ निम्नांकित सवालों के भी कुछ-न-कुछ समाधान अवश्य पाएंगे। जैसे- गीता क्या है, गीता में क्या लिखा है, गीता का महत्व सामान्य जीवन में किस प्रकार है,सात्विक आहार लिस्ट, सात्विक आहार मराठी, सात्विक आहार म्हणजे काय, एक योगी का आहार कैसा होना चाहिए, यौगिक आहार से होने वाले लाभों का वर्णन, सात्विक आहार पर निबंध, सात्विक भोजन रेसिपी, आहार के प्रकार, राजसी आहार क्या है, सात्विक भोजन और आयुर्वेद, सात्विक भोजन के लाभ और हानि, राजसिक भोजन क्या है, अंतरंग तप, तप कितने होते है, बारह प्रकार के तप, तप क्या है, तप:का अर्थ क्या है, बाह्य तप, नियम कितने हैं, तप जैन कोष, अंतरंग तप के भेद, एक तप म्हणजे किती वर्षे, गीता में कितने प्रकार के तत्व बताए गए हैं, आदि सवालों की जानकारी प्राप्त करने के पहले आइए गुरु महाराज का दर्शन करें।

'श्रीगीता-योग-प्रकाश' के 16 वां अध्याय का पाठ करने के लिए    यहां दवाएं। 

साधकों का आहार-बिहार कैसा होना चाहिए ? इस पर चर्चा करते सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज

Satoguni, Rajoguni and Tamoguni beliefs as per diet

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज श्री गीता योग प्रकाश के इस अध्याय में बताते हैं- What is yoga  What kind of faith is there?  What are the characteristics of people with reverence of Satvik, Rajas and Tamas?  What are the types of food?  What is the effect of diet on human body?  What diet should a sattvic person eat?  How are the Royal and Tamasi diets?  What are the types of Yagya?  What is tenacity called?  What type of tenacity is there?  What is Satvik Rajas and Tamas Dan? इत्यादि बातें । इन बातों को समझने के लिए आइए गुरु महाराज लिखित इस अध्याय  का पाठ करें-



श्रीगीता-योग-प्रकाश 

अध्याय 17

अथ श्रद्धात्रय - विभागयोग 

इस अध्याय का विषय श्रद्धात्रय - विभागयोग है ।

         सोलहवें अध्याय में शास्त्र या सद्ग्रन्थ के अनुकूल कर्म करने का निश्चय बतलाया गया है । इसलिए प्रश्न होता है कि जो शास्त्राविधि को छोड़कर केवल श्रद्धा से ही पूजादि कर्म करते हैं , उनकी गति कैसी होनी है - सात्त्विकी , राजसी वा तामसी ?

      उत्तर में कहा गया है - तीनों गणों के भिन्न - भिन्न उत्कर्ष - भाववाले भिन्न - भिन्न मनुष्य सतोगुणी , रजोगुणी और तमोगुणी होते हैं । तीनों की तीन तरह की श्रद्धाएँ होती हैं । प्रत्येक कुछ - न - कुछ स्वभाव से ही श्रद्धाशील अवश्य होता है । जिसकी जैसी श्रद्धा होती है , वह वैसा ही मनुष्य होता है । 

     सात्त्विक लोग देवताओं को , राजस लोग यक्षों को और तामस लोग भूत - प्रेतादि को पूजते हैं । जो पाखण्डी और अहंकारी , इच्छा और विषयासक्ति में प्रेम के बल से प्रेरित हो , शास्त्रीय विधि से रहित भयंकर तप करते हैं , वे शरीर और अन्तरात्मा को भी कष्ट देते हैं । ऐसे लोग आसुरी निश्चयवाले हैं । 

     आहार भी गुणानुसार होते हैं और उनका भी प्रभाव आहार करनेवालों पर होता है । उसी प्रकार यज्ञ , दान और तप के लिए भी समझना चाहिए । आयुष्य , सात्त्विकता , बल , आरोग्य , सुख और रुचि बढ़ानेवाले , रसदार चिकने , पौष्टिक और मन को प्रिय - ऐसे आहार सात्त्विक लोगों को प्रिय होते हैं । चरपरे , खट्टे , विशेष लवणयुक्त , बहुत गरम *   नीमवत् तीखे , रूखे और दाहकारक आहार राजस लोगों को प्रिय होते हैं । रोटी , भात आदि बनकर पहर भर से पड़ा हुआ , उतरा हुआ अर्थात् सड़ने पर आया हुआ फल , दुर्गन्ध - युक्त , बासी , जूठा आदि अपवित्र आहार तामस लोगों के हैं । उन्हें ऐसे ही भोजन प्रिय लगते हैं । 

     वह सात्त्विक यज्ञ है , जो फल - आश से रहित , विधि पूर्वक , कर्तव्य जानकर और परोपकारार्थ खूब मन लगाकर किया जाता है । जो फलेच्छा से और दम्भ से किया जाता है , वह यज्ञ राजस है । विधि - विहीन , फलाश - त्याग नहीं , श्रद्धा नहीं , इस प्रकार के किए गए यज्ञ को तामस यज्ञ कहते हैं । 

     देव , ब्राह्मण , गुरु और ज्ञानी की पूजा , पवित्रता , सरलता , ब्रह्मचर्य , अहिंसा - ये शारीरिक तप हैं । अकटु , सत्य , प्रिय और हितकर वचनों को बोलना और धर्मग्रन्थों का अभ्यास - ये वाचिक तप कहलाते हैं । मन की प्रसन्नता , सौम्यता ( प्रिय स्वभावयुक्त होना ) , मौन , आत्म - संयम और शुद्ध भावना - ये मानसिक तप हैं । परम श्रद्धालु , फलाश - त्यागी , समत्व में रहते हुए अच्छे स्वभाव के मनुष्य उपर्युक्त तीनों प्रकार के जो तप करते हैं , उन्हें सात्त्विक तप कहते हैं । जो तप सत्कार , मान और पूजा के लिए पाखण्डपूर्वक होता है , वह राजस है । कष्टकर , दुराग्रह से किए हुए और दूसरे को दुःख देने के हेतु किए हुए तप को तामस तप कहा है । 

     जो दान देश , काल और पात्र का विचार कर उचित अँचने पर और बदला पाने की इच्छा छोड़कर दिया जाता है , वह सात्त्विक दान है । जो दान बदला पाने का लक्ष्य करके दुःख के साथ दिया जाता है , वह राजस दान है । देश , काल और पात्र का कुछ भी विचार न कर तिरस्कार करके अनादर से दिया हुआ दान तामस दान है । इस अध्याय के नाम का विषय - वर्णन गीता में यहीं तक है । 

सप्तदश अध्याय समाप्त

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* सात्त्विक आहारों में भी अल्प - अल्प छहो स्वाद होते हैं । परन्तु ये जब विशेष मात्रा में होते हैं , तब सात्त्विक नहीं रहते हैं । विशेष औंटा हुआ गाय का दूध , भैंस का दूध , मत्स्य , मांस और पक्षी एवं कछुए , मछली , मुर्गी आदि सब प्रकार के अण्डजों के अण्डे गुण में बहुत गर्म हैं । ये उत्तेजक और वीर्य - रक्षा के बाधक हैं । ये सात्त्विक आहार नहीं हैं । 

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इस अध्याय के बाद वाले अध्याय 18 को पढ़ने के लिए  यहां दवाएं।


प्रभु प्रेमियों "श्रीगीता-योग-प्रकाश" नाम्नी पुस्तक के इस लेख पाठ द्वारा हमलोगों ने जाना कि "shraddhaatray-vibhaag yog kya hai? shraddha kitane tarah kee hotee hai? saatvik, raajas aur taamas shraddha vaale logon ke kya lakshan hain? bhojan kitane prakaar ke hote hain? aahaar ka manushy shareer par kya asar hota hai? saatvik vyakti ko kaisa aahaar lena chaahie? raajasee aur taamasee aahaar kaise hote hain?  yagy kitane prakaar ke hote hain? tap kise kahate hain ? tap kitane prakaar ka hota hai? saatvik raajas aur taamas daan kya hai?. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका याक्ष कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने । इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद्य का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें। 



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G17 आहार-विहारानुसार सतोगुणी, रजोगुणी और तमोगुणी श्रद्धाएँ ।। Bhagwat Geeta- 17tin Chapter G17   आहार-विहारानुसार  सतोगुणी, रजोगुणी और तमोगुणी  श्रद्धाएँ  ।।  Bhagwat Geeta- 17tin Chapter Reviewed by सत्संग ध्यान on 1/22/2021 Rating: 5

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