G18 (क) गीता की 5 बातें, जिनमें छुपा है आपकी हर सफलता का राज ।। Bhagwat Geeta- 18tin Chapter - SatsangdhyanGeeta

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G18 (क) गीता की 5 बातें, जिनमें छुपा है आपकी हर सफलता का राज ।। Bhagwat Geeta- 18tin Chapter

श्रीगीता-योग-प्रकाश / 18 (क)

प्रभु प्रेमियों ! भारत ही नहीं, वरंच विश्व-विख्यात श्रीमद्भागवत गीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा गाया हुआ गीत है। इसमें 700 श्लोक हैं तथा सब मिलाकर 9456 शब्द हैं। इतने शब्दों की यह तेजस्विनी पुस्तिका भारत की आध्यात्म-विद्या की सबसे बड़ी देन है। संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "श्रीगीता-योग-प्रकाश" इसी पुस्तिका के बारे में फैले हुए सैकड़ों भ्रामक विचारों को दूर करने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें सभी श्लोकों के अर्थ और उनकी टीका नहीं है। गीता के सही तात्पर्य को समझने के लिए जो दृष्टिकोण, साधनानुभूति-जन्य ज्ञान, संतवाणीी-सम्मत और गुरु ज्ञान से मेल खाते वचन चाहिए, वही इसमें दर्शाया गया है।

इस पोस्ट में  सन्यास योग की क्या आवश्यकता है? सन्यासी क्यों होना चाहिए? त्याग कितने प्रकार के हैं? त्याग किन-किन चीजों का किया जा सकता है? सात्विक, राजसी और तामसी त्याग क्या है? कोई भी काम कैसे पूरा होता है? गीता के अनुसार कोई भी काम सिद्ध होने के लिए किन-किन चीजों की आवश्यकता है? गुण-भेद के अनुसार ज्ञान, कर्म और कर्ता कितने प्रकार के होते हैं? सात्विक, राजसी और तामसी बुद्धि क्या है?   आदि बातों के बारे में बताया गया है। इसके साथ-ही-साथ निम्नांकित सवालों के भी कुछ-न-कुछ समाधान अवश्य पाएंगे। जैसे- वैराग्य योग, तांत्रिक योग, भक्ति योग, आध्यात्मिक योग, त्याग कितने प्रकार के होते हैं, तीन प्रकार के त्याग, त्याग के कितने भेद है, स्त्री का त्याग कैसा होता है, गीता के सार की व्याख्या कीजिए, आधुनिक जीवन में गीता की उपयोगिता, गीता से हमें क्या शिक्षा मिलती है, गीता के 18 अध्याय का सारांश, आदि सवालों की जानकारी प्राप्त करने के पहले आइए गुरु महाराज का दर्शन करें।

'श्रीगीता-योग-प्रकाश' के 17 वां अध्याय का पाठ करने के लिए    यहां दवाएं। 

सफलता के पांच महत्वपूर्ण पॉइंट पर चर्चा करते सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज

5 things of Geeta, in which the solution to all your problems is hidden

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज श्री गीता योग प्रकाश के इस अध्याय में बताते हैं- What is the need for sannyas yoga?  Why should a monk?  What are the types of renunciation?  What are the things that can be sacrificed?  What is satvik, majestic and tamasi renunciation?  How does any work get completed?  According to the Gita, what are the things required to prove any work?  According to quality, how many types of knowledge, deeds and doers are there?  What is sattvik, majestic and tamasic intelligence? इत्यादि बातें । इन बातों को समझने के लिए आइए गुरु महाराज लिखित इस अध्याय  का पाठ करें-



श्रीगीता-योग-प्रकाश 

अध्याय 18

अथ संन्यासयोग 

इस अन्तिम अध्याय का विषय संन्यासयोग है ।

     सत्रहवें अध्याय तक के ज्ञान के बाद संन्यास आश्रम का ज्ञान बताने के लिए और जो कुछ बचा , उसे भी कहने की आवश्यकता अवश्य ही है । इसीलिए यह अन्तिम अध्याय कहा गया है । 

     संन्यास का अर्थ त्याग भी किया जाता है । परन्तु इस अध्याय में संन्यास और त्याग के भिन्न - भिन्न रहस्य बतलाए गए हैं । इच्छा से उत्पन्न कर्मों के त्याग को ' संन्यास ' और समस्त कर्मफल त्याग देने को ' त्याग ' कहते हैं । 

     कितने विचारवान् कहते हैं कि कर्म - मात्र दोषमय होने के कारण त्यागनेयोग्य हैं । दूसरे का कहना है कि यज्ञ , दान और तप - रूप कर्म त्यागनेयोग्य नहीं हैं , करनेयोग्य हैं । 

     त्याग तीन प्रकार के हैं । यज्ञ , दान तथा तप विवेकी को पवित्र करनेवाले हैं ; परन्तु इन कर्मों को भी अनासक्ति से और फल - इच्छा त्याग*   कर करना चाहिए । नियमवाले कर्मों का त्याग नहीं करना चाहिए । मोह - ग्रसित हो यदि इनको त्यागा जाय , तो वह त्याग तामस माना गया है । दुःखदायक जान काया - कष्ट के भय से कर्म का जो त्याग करता है , वह राजस त्याग है । इससे उसे त्याग का फल नहीं मिलता है । नियत वा नियमवाला कर्म करना चाहिए , ऐसा समझकर जो किया जाता है । परन्तु अनासक्ति से और फल - आश छोड़कर - वह सात्त्विक कर्म है । जो संशय - रहित हैं , शुभ भावनावाले हैं , त्यागी और बुद्धिमान हैं , वे अकुशल ( अकल्याणकारी ) कर्म से द्वेष नहीं करते और कुशल ( कल्याणकारी ) कर्म से द्वेष नहीं करते और कुशल ( कल्याणकारी ) कर्म में डूबे हुए भी नहीं रहते हैं । जो कर्म - फल का त्याग करता है , वह त्यागी है । देहधारियों से सम्पूर्णतः कर्म का त्याग नहीं हो सकता है । सकामी पुरुषों के कर्म के ही ( १ ) अच्छा , ( २ ) बुरा , ( ३ ) अच्छा - बुरा - मिश्रित ; तीन प्रकार के फल मरने पर भी होते हैं । और त्यागी**     पुरुषों के कर्म का फल किसी काल में नहीं होता ; क्योंकि उनसे हुए कर्म यर्थाथ में कर्म ही नहीं हैं । 

     सम्पूर्ण कर्मों के सिद्ध होने में ये पाँच हेतु हैं- ( १ ) क्षेत्र , ( २ ) कर्ता , ( ३ ) अलग - अलग साधन , ( ४ ) अलग - अलग क्रियाएँ और ( ५ ) दैव अर्थात् अज्ञात;∆    ऐसा होने पर भी जो अपने को ही कर्ता मानता है , वह अबोध है । जिसने अहंकार को त्यागा¶    है , पवित्र बुद्धिवाला है , वह कर्म करता हुआ भी कर्म - बन्धन से रहित रहता है । कर्म में प्रेरण करनेवाले ये तीन हैं- ( १ ) ज्ञान , ( २ ) ज्ञेय ( जानने की वस्तु ) और ( ३ ) ज्ञाता ( जाननेवाले ) । और कर्ता , इन्द्रिय एवं क्रिया के संयोग से कर्म होता है । 

      गुण - भेद के अनुसार ज्ञान , कर्म और कर्ता तीन प्रकार के हैं । जिसके द्वारा सबमें एक ही अविनाशी भाव और अनेकता में एकता दरसे , वह सात्त्विक ज्ञान है । भिन्न - भिन्न में भिन्नता ही दरसे , वह राजस ज्ञान है और जो निष्कारण - तत्त्वार्थ को बिना जाने - बुझे एक ही बात में यह समझकर आसक्त रहता है कि यही सब कुछ है , वह अल्प ज्ञान तामस है । 

     जो अहंकार और आसक्ति - रहित है , जिसमें दृढ़ता और उत्साह है , जो सफलता - विफलता में हर्ष - शोक नहीं करता है , वह सात्त्विक कर्ता है । जो रागी ( सांसारिक विषयों का प्रेमी ) है , कर्म - फल - इच्छुक है , लोभी है , अपवित्र है और हर्ष - शोकवाला है , वह राजस कर्ता है । जो अव्यवस्थित , असंस्कारी , झक्की , शठ , नीच , आलसी , अप्रसन्नचित्त और दीर्घसूत्री ( जो कार्य का संपादन यथोचित समय से अधिक विलम्ब लगाकर करे ) है , वह तामस कर्ता है । 

     प्रवृत्ति , निवृत्ति , कार्य , अकार्य , भय , अभय , बन्धन और मोक्ष का भेद जो बुद्धि जानती है , वह सात्त्विकी है । जो बुद्धि धर्म - अधर्म और कार्य - अकार्य का विचार गलत ढंग से करती है , वह राजसी है । जो बुद्धि अन्धकार से घिरी हुई है , अधर्म को धर्म मानती है और सब बातें उलटी - ही - उलटी देखती है , वह तामसी है । .... क्रमशः ।। 


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* यह सात्त्विक त्याग है ।

** ऐसा त्यागी , जिसे शरीर छोड़ने पर स्वर्ग आदि किसी लोक - लोकान्तर में रुकना न पड़े , उसे ब्रह्म - निर्वाण ही प्राप्त हो जाय । 

भारत की स्वतंत्रता के हेतु दैव या अज्ञात कारण को लोग नहीं जानते थे । ( १ ) क्षेत्र , ( २ ) कर्ता , ( ३ ) अलग - अलग साधन और ( ४ ) अलग - अलग क्रियाएँ - इन चारों से लगभग पचास वर्षों से भारतवासी घोर चेष्टा कर रहे थे ; परन्तु अज्ञात कारण - दैवात् कारण पीछे प्रगट हुआ , वह था द्वितीय विश्व युद्ध । इसी को होनी अथवा प्रारब्ध भी कह सकेंगे ।

¶ स्थिर और पूर्ण त्याग केवल बुद्धि - विचार - द्वारा सम्भव नहीं है । ध्यानाभ्यास - द्वारा जो समाधि के अन्तःकरण से ऊपर उठकर रहता है , वही शरीर - भाव में उतरकर अहंकार - रहित हो कर्म कर सकता है , यथार्थ में उसी का त्याग दृढ़ और पूर्ण है । 

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इस अध्याय के बाद वाले अध्याय 18 (ख) को पढ़ने के लिए   यहां दवाएं


प्रभु प्रेमियों "श्रीगीता-योग-प्रकाश" नाम्नी पुस्तक के इस लेख पाठ द्वारा हमलोगों ने जाना कि "sanyaas yog kee kya aavashyakata hai? sanyaasee kyon hona chaahie? tyaag kitane prakaar ke hain? tyaag kin-kin cheejon ka kiya ja sakata hai? saatvik, raajasee aur taamasee tyaag kya hai? koee bhee kaam kaise poora hota hai? geeta ke anusaar koee bhee kaam siddh hone ke lie kin-kin cheejon kee aavashyakata hai? gun-bhed ke anusaar gyaan, karm aur karta kitane prakaar ke hote hain? saatvik, raajasee aur taamasee buddhi kya hai?. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका याक्ष कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने । इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद्य का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें। 



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G18 (क) गीता की 5 बातें, जिनमें छुपा है आपकी हर सफलता का राज ।। Bhagwat Geeta- 18tin Chapter G18 (क)  गीता की 5 बातें, जिनमें छुपा है आपकी हर सफलता का राज ।। Bhagwat Geeta- 18tin Chapter Reviewed by सत्संग ध्यान on 1/22/2021 Rating: 5

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