G18 (ख) चारों वर्णों के काम और मोक्षाधिकारी कौन-कौन हैं ।। Bhagwat Geeta- 18tin Chapter - SatsangdhyanGeeta

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G18 (ख) चारों वर्णों के काम और मोक्षाधिकारी कौन-कौन हैं ।। Bhagwat Geeta- 18tin Chapter

 

श्रीगीता-योग-प्रकाश / 18 (ख)

प्रभु प्रेमियों ! भारत ही नहीं, वरंच विश्व-विख्यात श्रीमद्भागवत गीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा गाया हुआ गीत है। इसमें 700 श्लोक हैं तथा सब मिलाकर 9456 शब्द हैं। इतने शब्दों की यह तेजस्विनी पुस्तिका भारत की आध्यात्म-विद्या की सबसे बड़ी देन है। संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "श्रीगीता-योग-प्रकाश" इसी पुस्तिका के बारे में फैले हुए सैकड़ों भ्रामक विचारों को दूर करने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें सभी श्लोकों के अर्थ और उनकी टीका नहीं है। गीता के सही तात्पर्य को समझने के लिए जो दृष्टिकोण, साधनानुभूति-जन्य ज्ञान, संतवाणीी-सम्मत और गुरु ज्ञान से मेल खाते वचन चाहिए, वही इसमें दर्शाया गया है।

इस पोस्ट में  सात्त्विक धृति क्या है? सात्विक सुख किसे कहते हैं? त्रैगुणों से कौन मुक्त है? क्षत्रिय, वैश्य, ब्राह्मण और शूद्र के स्वाभाविक कर्म कौन-कौन से हैं? चारों वर्णों के लोग मोक्ष के अधिकारी किस तरह से हैं? परमात्मा की शरण लेने से क्या होता है? सब धर्मों से कौन छूट सकता है? निस्त्रैगुण वा गुणातीत होने के लिए क्या करना होगा? ध्यान योग करने से परमात्म-भक्ति छूटती है कि नहीं?   आदि बातों के बारे में बताया गया है। इसके साथ-ही-साथ निम्नांकित सवालों के भी कुछ-न-कुछ समाधान अवश्य पाएंगे। जैसे- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य शूद्र की उत्पत्ति कैसे हुई, शूद्र में कौन कौन सी जाति आती है, गीता के अनुसार चार वर्ण कौन से हैं, गीता में शूद्र, रामायण में शूद्र, ब्राह्मण श्लोक, शूद्र ब्राह्मण, जन्म से कोई ब्राह्मण नहीं होता, वेदों में शूद्र, वेदों में वर्ण व्यवस्था, शूद्र राजा, वर्ण व्यवस्था श्लोक, जैन दर्शन के अनुसार मोक्ष प्राप्ति के कितने उपाय है, मोक्ष कितने प्रकार के होते हैं, मोक्ष और मुक्ति में क्या अंतर है, मोक्ष प्राप्ति के उपाय,वर्ण व्यवस्था के लाभ, कलयुग में मोक्ष प्राप्ति के उपाय, मोक्ष प्राप्ति का अर्थ, मोक्ष क्या है, जैन दर्शन में मोक्ष, मोक्ष प्राप्ति का मंत्र, मोक्ष प्राप्ति के साधन कलयुग में, मोक्ष की अवधि कितनी है, आदि सवालों की जानकारी प्राप्त करने के पहले आइए गुरु महाराज का दर्शन करें।

'श्रीगीता-योग-प्रकाश' के 18 (क) वां अध्याय का पाठ करने के लिए    यहां दवाएं।  

मोक्ष प्राप्त चारों वर्णों के संत सतगुरु

Who are the works and salutations of the four characters

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज श्री गीता योग प्रकाश के इस अध्याय में बताते हैं- What is Sattvik Dhriti?  What is satvik happiness?  Who is free from the triangles?  What are the natural deeds of Kshatriyas, Vaishyas, Brahmins and Shudras?  How are the people of all the four varnas entitled to salvation?  What happens when you take refuge in God?  Who can get rid of all religions?  What do you have to do to become nistraiguna or multiplication?  Doing meditation yoga removes divine devotion or not? इत्यादि बातें । इन बातों को समझने के लिए आइए गुरु महाराज लिखित इस अध्याय  का पाठ करें-



श्रीगीता-योग-प्रकाश 

अध्याय 18

अथ संन्यासयोग 

इस अन्तिम अध्याय का विषय संन्यासयोग है ।

     .....जिस स्थिर वा इधर - उधर नहीं भागनेवाली धृति वा धारणा से मन , प्राण और इन्द्रियों के व्यापार योग - द्वारा मनुष्य करता है , वह धृति सात्त्विक है । जिस धृति से मनुष्य फलाकांक्षी होकर धर्म, काम और अर्थ को आसक्ति से धारण करता है , वह राजसी है । जिस धृति से दुर्बुद्धि मनुष्य निद्रा , भय , शोक , निराशा और मद को छोड़ नहीं सकता , वह तामसी है । 

     जिस अभ्यास से मनुष्य प्रसन्न रहता है , जिससे दुःख का अन्त होता है , जो आरम्भ में विष के समान लगता है ; परन्तु फल में अमृत ऐसा होता है और जो आत्म - ज्ञान की प्रसन्नता से उत्पन्न होता है , वह सात्त्विक सुख है । विषय और इन्द्रिय के संयोग से जो आरम्भ में अमृत के समान लगता है , पर फल में विष के समान होता है , वह सुख राजस है । जो आरम्भ और फल में मोहित करने वाला है और निद्रा , आलस्य और प्रमाद से उत्पन्न हुआ है , वह तामस सुख है । 

     पृथ्वी और स्वर्ग में ऐसा कोई नहीं है , जो त्रयगुण से मुक्त हो । चारों वर्गों के स्वभावज कर्म हैं । शम , दम , शौच , क्षमा , सरलता , ज्ञान , अनुभव , आस्तिकता - ये ब्राह्मण के स्वभावज कर्म हैं । शौर्य ( शूर - वीरता ) , तेजस्विता , धैर्य , युद्ध से न भागना , दान देना और प्रभु वा शासक - भाव - ये क्षत्रियों के स्वभावज कर्म हैं । खेती , गौ - पालन और वाणिज्य – ये वैश्य के स्वभावज कर्म हैं ; और परिचर्या वा सेवा - कर्म शूद्र का स्वभावज कर्म है । अपने - अपने स्वाभाविक कर्म में रत मनुष्य सिद्धि पाता है । तात्पर्य यह कि अपने स्वभावानुकूल कर्म करते हुए मनुष्य मोक्ष पाने का साधन कर सकते हैं और उसे प्राप्त कर सकते हैं । मोक्ष पाने का साधन परमात्मा का भजन है । ईश्वर सब प्राणियों के हृदय में रहकर कुम्हार की तरह उन्हें चाक पर घुमाता है । ( ईश्वर कर्म - फल - भोग में घुमाता है । ) अतएव सर्वभाव से परमात्मा - ईश्वर की शरण लेनी चाहिये । उनकी कृपा से परम शान्तिमय अमर पद की प्राप्ति होगी । 

     सब धर्मों को छोड़*    कर परमात्मा की ही शरण लेनी चाहिये । वे सब पापों से मुक्त करेंगे । यह गूढ ज्ञान ( गीता - ज्ञान ) जो भक्तों को देगा , वह परमात्म - भक्ति - द्वारा निस्संदेह परमात्मा को पावेगा । उस ज्ञानदाता की अपेक्षा मनुष्यों में पृथ्वी पर परमात्मा को कोई अधिक प्रिय नहीं है और न होने वाला है । जो गीता - ज्ञान का अभ्यास करेगा , वह ज्ञान - यज्ञ - द्वारा परमात्मा का भजन करेगा । अध्याय ३ के ५ वें श्लोक में और अध्याय १८ के ११ वें श्लोक में कहा गया हैं कि " प्रकृति से उत्पन्न गुण ( रज , सत्त्व और तम अर्थात् उत्पादक , पोषक और विनाशक ) प्रत्येक से बरबस कर्म कराते हैं , कोई एक क्षण भर भी बिना कर्म किये नहीं रह सकता । देहधारी के लिये सम्पूर्णतः कर्म का त्याग असम्भव है । " 

      इन बातों से विदित होता है कि देहधारियों को कर्म में लगाने के लिये त्रयगुणों का स्वाभाविक महान् अधिकार है । 

     धर्म कर्माधीन है , अतएव त्रयगुणातीत होने पर ही सब धर्मों से छूटा जा सकता है । अध्याय २ श्लोक ४५ में निस्त्रौगुण होने के लिये कहा भी गया है । अध्याय १८ श्लोक ११ में यह भी कहा गया है कि कर्म - फल का त्याग करना ' त्याग ' है । यह त्याग भी केवल बौद्धिक विवेक से सम्पूर्णतः होना असम्भव है ; क्योंकि कर्म - फल - प्राप्ति की इच्छा केवल विचार ही विचार से वैसे ही . छूट नहीं सकती , जैसे सौर जगत् में रहते हुए सूर्य के प्रभाव से छूटना केवल विचार ही विचार से नहीं हो सकता है । इच्छा - मण्डल या मन - मण्डल से ध्यान - योग द्वारा ऊपर उठने पर मन - मण्डल छूटेगा , इच्छाएं समाप्त हो जायँगी । इस तरह कर्म फल की इच्छा नष्ट हो जायगी या छूटेगी । 

     निस्त्रैगुण वा गुणातीत होने में तो केवल विचार - ही - विचार को लवलेश - मात्र भी स्थान और शक्ति नहीं है । इसके लिये तो उपर्युक्त ऊर्ध्व गति ही एकमात्र ओर से छोर तक विधि है । अन्य विधि कदापि नहीं हो सकती है । चाहे सब कर्मों का त्याग कर , एक परमात्मा की शरण में जाया जाय , चाहे निस्त्र गुण वा गुणातीत बना जाय और चाहे कर्म - फल त्याग कर शरीरधारी रहते हुए , कर्म करते हुए , कर्म - फल - त्यागी बनकर , सच्चा योगी बना जाय - इन बातों के लिये अपने अन्दर ध्यान - योग - द्वारा पहले इन्द्रियों की धाराओं को आज्ञा - चक्र के केन्द्र - विन्दु में केन्द्रित करना होगा ; इस प्रकार केन्द्रित होने में सिमटाव के कारण ' ऊर्ध्वगति ' होगी और तब मन - मण्डल और गुणों के मण्डलों को पार किया जा सकेगा । ऐसा अवश्य होगा । 

     भक्तजन जानें कि ध्यानयोग में परमात्म - भक्ति कदापि नहीं छूटती है । इसके द्वारा भक्ति की गंभीरता में प्रवेश कर , उसके अन्त तक पहुँचा जाता है , जहाँ “ जानत तुम्हहिं तुम्हइ होइ जाई । " चरितार्थ होता है । संन्यास और त्याग में यही गूढ़ रहस्य है । 

अष्टादश अध्याय समाप्त ।। 


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* सब धर्मों से वही छूटेगा , जो सब कम्मों से छूटेगा ; क्योंकि कर्म करने से ही धर्म होता है । इन्द्रियों में चेतन - धाराओं के रहने से ही कर्म होता है । चेतन - धाराओं को ध्यान - योग - द्वारा इन्द्रियों में से आकृष्ट कर , आज्ञाचक्र के केन्द्र में केन्द्रित करने से कर्मों से छुटकारा हो जायगा , तो सब कर्म छूट जायंगे । अर्जुन बाह्य रूप से तो भगवान् श्रीकृष्ण की शरण में सब प्रकार से था ही ; परन्तु केवल उसी प्रकार शरण लेने से सब धर्म नही छूट सकते हैं । उपयुक्त प्रकार से परमात्म - शरण में जाने से ही सब धर्म छूटते हैं । अर्जुन को इस उपयुक्त प्रकार से भी शरण में जाना चाहिये था । इसीलिये उन्हें यह उपदेश दिया गया था । पापी इस प्रकार ईश्वर की शरण में जाय , यह संभव नहीं है । प्रकार से शरण लेनेवाले को तो इसका अभ्यास करने के समय से ही परमात्मा की सम्मुखता होने लगती है और वह उनकी कृपा से इस पापों से छूट जाता है । 

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श्री गीता योग प्रकाश का पुराना कंवर

श्री गीता योग प्रकाश के पुराने संस्करण


नोट- "श्रीगीता-योग-पकाश" नामक पुस्तक में जो भी सामग्री यूज़ किया गया है। वह  उपर्युक्त संस्करण वाला बुक से ही लिया गया है। जय गुरु महाराज।।


इस अध्याय के बाद गीता-सार को पढ़ने के लिए   यहां दवाएं


प्रभु प्रेमियों "श्रीगीता-योग-प्रकाश" नाम्नी पुस्तक के इस लेख पाठ द्वारा हमलोगों ने जाना कि "saattvik dhrti kya hai? saatvik sukh kise kahate hain? traigunon se kaun mukt hai? kshatriy, vaishy, braahman aur shoodr ke svaabhaavik karm kaun-kaun se hain? chaaron varnon ke log moksh ke adhikaaree kis tarah se hain? paramaatma kee sharan lene se kya hota hai? sab dharmon se kaun chhoot sakata hai? nistraigun va gunaateet hone ke lie kya karana hoga? dhyaan yog karane se paramaatm-bhakti chhootatee hai ki nahin?. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका याक्ष कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने । इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद्य का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें। 



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G18 (ख) चारों वर्णों के काम और मोक्षाधिकारी कौन-कौन हैं ।। Bhagwat Geeta- 18tin Chapter G18 (ख) चारों वर्णों के काम और मोक्षाधिकारी कौन-कौन हैं ।। Bhagwat Geeta- 18tin Chapter Reviewed by सत्संग ध्यान on 1/22/2021 Rating: 5

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