G16 दैबी और आसुरी प्रवृत्ति के लोगों के लक्षण और गति का वर्णन ।। Bhagwat Geeta- 16tin Chapter - SatsangdhyanGeeta

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G16 दैबी और आसुरी प्रवृत्ति के लोगों के लक्षण और गति का वर्णन ।। Bhagwat Geeta- 16tin Chapter

श्रीगीता-योग-प्रकाश / 16

प्रभु प्रेमियों ! भारत ही नहीं, वरंच विश्व-विख्यात श्रीमद्भागवत गीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा गाया हुआ गीत है। इसमें 700 श्लोक हैं तथा सब मिलाकर 9456 शब्द हैं। इतने शब्दों की यह तेजस्विनी पुस्तिका भारत की आध्यात्म-विद्या की सबसे बड़ी देन है। संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "श्रीगीता-योग-प्रकाश" इसी पुस्तिका के बारे में फैले हुए सैकड़ों भ्रामक विचारों को दूर करने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें सभी श्लोकों के अर्थ और उनकी टीका नहीं है। गीता के सही तात्पर्य को समझने के लिए जो दृष्टिकोण, साधनानुभूति-जन्य ज्ञान, संतवाणीी-सम्मत और गुरु ज्ञान से मेल खाते वचन चाहिए, वही इसमें दर्शाया गया है।

इस पोस्ट में  दैवासुरसंपद्विभागयोग क्या है? परमात्मा स्वरुप को कौन प्राप्त कर सकता है? दैवी प्रकृति और आसुरी प्रकृति क्या है? देवी और आश्रय प्रकृति का महत्व क्या है? दैवी प्रकृति वाले का क्या गुण है? आसुरी प्रकृति वाले का क्या-क्या गुण है? दैवी संपत्ति से मोक्ष होता है। बांसुरी संपत्ति वाले बंधन में पढ़ते हैं। आस्तिक और नास्तिक में क्या अंतर है? आसुरी संपत्ति वाले का स्वभाव कैसा होता है? आसुरी प्रकृति वाले की क्या गति होती है? नरक के द्वार कौन-कौन से हैं? सदग्रंथों की बातों को नहीं मानने वाले की गति क्या होती है?  आदि बातों के बारे में बताया गया है। इसके साथ-ही-साथ निम्नांकित सवालों के भी कुछ-न-कुछ समाधान अवश्य पाएंगे। जैसे- गीता का १६ अध्याय, गीता का सोलहवां अध्याय, अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थितिः, आसुरी सम्पदा, दैवी सम्पदा, गीता का सोलहवां अध्याय, गीता का १६ अध्याय, नरक का द्वार, स्वर्ग कितने प्रकार के होते हैं, नरक लोक में क्या होता है, नरक के पटल, नरक का देवता, नरक की परिभाषा,, आदि सवालों की जानकारी प्राप्त करने के पहले आइए गुरु महाराज का दर्शन करें।

'श्रीगीता-योग-प्रकाश' के 15 वां अध्याय का पाठ करने के लिए    यहां दवाएं।  

दैवी और आसुरी संपत्ति का वर्णन करते सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज

Describe the signs and motions of the people of diabetes and demonic tendencies

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज श्री गीता योग प्रकाश के इस अध्याय में बताते हैं- What is Daivasura Sampadbhagya Yoga?  Who can receive the divine form?  What is divine nature and demonic nature?  What is the importance of goddess and shelter nature?  What is the quality of a divine nature?  What are the qualities of demonic nature?  Divine wealth leads to salvation.  The flute studies in property bondage.  What is the difference between a believer and an atheist?  What is the nature of demonic property?  What is the speed of demonic nature?  What are the gates of hell?  What is the speed of one who does not listen to the scriptures? इत्यादि बातें । इन बातों को समझने के लिए आइए गुरु महाराज लिखित इस अध्याय  का पाठ करें-



श्रीगीता-योग-प्रकाश 

अध्याय 16

अथ दैवासुर - संपद्विभागयोग 

इस अध्याय का विषय दैवासुरसंपद्विभागयोग है । 

     अध्याय ९ में आसुरी और दैवी प्रकृति वालों का वर्णन समास रूप से देते हुए कहा है कि परम भावमय परमात्मस्वरूप को दैवी प्रकृति वाले पहचान सकते हैं ; परन्तु आसुरी प्रकृति वाले उसे नहीं पहचान सकते ।

     उस परमात्म - स्वरूप पुरुषोत्तम का पहचानना अत्यन्त आवश्यक है ; क्योंकि उसके ही पहचानने से जीवों को मोक्ष प्राप्त होता है । 

     अतएव यह बड़ी आवश्यकता हुई कि दैवी और आसुरी सम्पदाओं को विभागपूर्वक कुछ विस्तार से जनाया जाय , ताकि लोग अपने को आसुरी संपद् से निकालते और बचाते रहकर देवी संपद् में दृढ़ता से अपने को रखे रहें अर्थात् अध्याय १५ में कहे गये पुरुषोत्तम को प्राप्त करने के योग्य गुणों को वे यत्न से धारण कर सकें । 

     दैवी सम्पदा- १ ) निर्भयता , ( २ ) अन्तःकरण को शुद्धता , ( ३ ) निष्ठा ( ज्ञान और योग में निरन्तर गाढ़ स्थिति ) , ( ४ ) दान , ( ५ ) इन्द्रिय - निग्रह , ( ६ ) यज्ञ ( लोक - उपकारार्थ कर्म ) , ( ७ ) अध्यात्म वाक्यों का पाठ , ( ८ तप , ( ९ ) सरलता , ( १० ) अहिंसा , ( ११ ) सत्य , ( १२ ) अक्रोध , ( १३ ) त्याग , ( १४ ) शान्ति , ( १५ ) अपिशुनता ( चुगली नहीं करनी ) , ( १६ ) दया , ( १७ ) इन्द्रिय - भोगों में लोभी नहीं होना , ( १८ ) कोमलहृदयता , ( १ ९ ) अयोग्य कर्म करने में लज्जा , (२० ) अचंचलता , ( २१ ) तेजस्विता , ( २२ ) क्षमा , ( २३ ) धृति अर्थात् धैर्य ( २४ ) शौच , ( २५ ) अद्रोह और ( २६ ) निरभिमानिता ; इन २६ आस्तिक बनते हैं , पर यथार्थतः वे ईश्वरवादी वा आस्तिक कहने योग्य गुणों को ' देवी सम्पत्ति ' कहते हैं । जिनमें ये हों , वे देवी सम्पत्ति वाले हैं । 

     आसुरी सम्पदा- ( १ ) दम्भ , ( २ ) दर्प ( घमण्ड ) , ( ३ ) अभिमान ( ४ ) क्रोध , ( ५ ) निष्ठुरता या कड़ाई और ( ६ ) अज्ञान - ये छः दुर्गुण आसुरी सम्पद् के हैं । ये जिनमें हैं , वे आसुरी सम्पद् के मनुष्य हैं । अथवा यह कहना अनुचित नहीं होगा कि दैवी सम्पत्ति के उलटे लक्षण सब आसुरी सम्पत्ति के हैं । 

     दैवी सम्पद् मोक्षदायक और आसुरी सम्पद् बन्धन करने वाले हैं । इस लोक में दो प्रकार के लोग होते हैं - दैवी और आसुरी । म प्रवृत्ति क्या है , निवृत्ति क्या है , आसुरी लक्षणवाले यह नहीं जानते । उन्हें पवित्रता और सदाचारिता ज्ञात नहीं होती और री न वे सत्य का ही आदर करते हैं । वे कहते हैं- " जगत् असत्य , निराधार और ईश्वर*   रहित है । जीव - सृष्टि केवल स्त्री - पुरुष के संयोग से हुई है । उसमें विषय ही भोगना कर्त्तव्य है । " ये भयानक काम करने वाले मतिमन्द - जगत् के शत्र - दुष्टगण इस अभिप्राय को पकड़े हुए संसार - मर्यादा के नाश के लिये बढ़ते हैं । ये तृप्त न होने वाली कामनाओं से भरपूर , पाखण्डी , मानी , मदान्ध , अशुभ निश्चय वाले , मोहवश दुष्ट इच्छाएं ग्रहण करके संसार में फंसे रहते हैं । संसार - प्रलय तक अन्त नहीं होने वाली , नाप - जोख से हीन चिन्ताओं का सहारा लेकर , कामों के अत्यन्त भोगी , " भोग ही सर्वस्व है ' ऐसा निश्चय वाले , अनेक आशाओं के जाल में फंसे हुए कामी , क्रोधी , विषय - भोग के लिये अन्याय से धन - संग्रह करना चाहते हैं । इनकी इच्छाएं बहुत होती हैं , ये अपने को श्रीमान् , सिद्ध , बलवान् और कुलीन मानते हैं । अपने समान किसी दूसरे को नहीं मानते हैं । मैं यज्ञ करूंगा , दान करूंगा , आनन्द करूँगा , एक शत्रु को तो मारा , अब दूसरे को भी मारूंगा - मूढत्व दशा में आसूरी सम्पत्ति के लोग ऐसा मानते हैं । ये मोह - जाल में फँस , विषय - भोग में मस्त , अशुभ नरक में गार पड़ते हैं । इन नीच , द्वषी , क्र र , अधम नरों को परमात्मा अत्यन्त आसुरी योनियों में बारम्बार डालते हैं । परमात्मा को नहीं पाकर ये और भी अधम गति को प्राप्त होते हैं ।  

     काम , क्रोध और लोभ - ये नरक के तीन द्वार हैं । अतएव । मनुष्य को चाहिये कि इन्हे त्याग आत्मा को ये तीनों अत्यन्त वभ हानि में डालते हैं । परन्तु इन तीनों से दूर रहने वाला मनुष्योती आत्मा के कल्याण का आचरण करता है और परम गति को पाता है । 

     सद्ग्रन्थों में कही गयी विधियों को छोड़कर जो मनमाना और करने लगता है , वह विषय - भोगों में डूबता है । इस तरह वह यंत्र न सिद्धि पाता है , न सुख पाता है और न परम गति पाता है अतएव सद्ग्रन्थों द्वारा निर्णीत कर्त्तव्य कर्मों को जानकर कम करना चाहिये ।

 ।। षोडश अध्याय समाप्त । ।


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*  जो एक सर्वव्यापी और सर्वपर ईश्वर नहीं मानते , बल्कि प्रत्येक शरीरस्थ जीवात्मा को अर्थात् भिन्न - भिन्न असंख्य शरीरों की आत्मा को , अनेक जानते हुए , उन्हीं अनेक को पृथक् - पृथक् अनेकता में रह सारी सृष्टि में फैल कर रहने को ही , उनकी सर्वव्यापकता बतलाकर उन अनेक को ही ईश्वर मानते हैं , वे सर्वसाधारण की दृष्टि में ईश्वरवादी अर्थात् ण ५ ) म . २१ ) ता नहीं जा नहीं है - नास्तिक हैं । ईश्वर एक ही होना चाहिये , अनेक नहीं । 

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इस अध्याय के बाद वाले अध्याय 17 को पढ़ने के लिए  यहां दवाएं।


प्रभु प्रेमियों "श्रीगीता-योग-प्रकाश" नाम्नी पुस्तक के इस लेख पाठ द्वारा हमलोगों ने जाना कि "daivaasurasampadvibhaagayog kya hai? paramaatma svarup ko kaun praapt kar sakata hai? daivee prakrti aur aasuree prakrti kya hai? devee aur aashray prakrti ka mahatv kya hai? daivee prakrti vaale ka kya gun hai? aasuree prakrti vaale ka kya-kya gun hai? daivee sampatti se moksh hota hai. baansuree sampatti vaale bandhan mein padhate hain. aastik aur naastik mein kya antar hai? aasuree sampatti vaale ka svabhaav kaisa hota hai? aasuree prakrti vaale kee kya gati hotee hai? narak ke dvaar kaun-kaun se hain? sadagranthon kee baaton ko nahin maanane vaale kee gati kya hotee hai?. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका याक्ष कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने । इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद्य का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें। 



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G16 दैबी और आसुरी प्रवृत्ति के लोगों के लक्षण और गति का वर्णन ।। Bhagwat Geeta- 16tin Chapter G16  दैबी और आसुरी प्रवृत्ति के लोगों के लक्षण और गति का वर्णन ।। Bhagwat Geeta- 16tin Chapter Reviewed by सत्संग ध्यान on 1/21/2021 Rating: 5

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