G14 सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण का क्या स्वभाव है ।। Shrimad Bhagwat Geeta- 14tin Chapter - SatsangdhyanGeeta

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G14 सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण का क्या स्वभाव है ।। Shrimad Bhagwat Geeta- 14tin Chapter

श्रीगीता-योग-प्रकाश / 14

प्रभु प्रेमियों !  श्रीमद्भागवत गीता की महिमा में बताया गया है कि "जो मनुष्य शुद्धचित्त होकर प्रेमपूर्वक इस पवित्र गीताशास्त्रका पाठ करता है, वह भय और शोक आदिसे रहित होकर विष्णुधामको प्राप्त कर लेता है॥"  "जो मनुष्य शुद्धचित्त होकर प्रेमपूर्वक इस पवित्र गीताशास्त्रका पाठ करता है, वह भय और शोक आदिसे रहित होकर विष्णुधामको प्राप्त कर लेता है॥१॥" "जो मनुष्य सदा गीताका पाठ करनेवाला है तथा प्राणायाममें तत्पर रहता है, उसके इस जन्म और पूर्वजन्ममें किये हुए समस्त पाप नि:सन्देह नष्ट हो जाते हैं॥२॥"  इस तरह की बहुत सारी बातें गीता महिमा के अनुकूल है। परंतु इसकी वास्तविक जानकारी किसी योगी महापुरुष की वाणी से ही निश्चित होती है। 

इस पोस्ट में  गुणत्रै विभाग योग क्या है? त्रैगुणात्मिका प्रकृति क्या है? महद्ब्रह्म क्या है? ब्राह्मण किसे कहते हैं? सतोगुण रजोगुण और तमोगुण का क्या स्वभाव है? त्रैगुणों के बढ़ने पर क्या होता है? सतोगुण का प्रभाव कैसा होता है? गुनातीत कैसे बना जा सकता है? क्या गुनातीत स्थितप्रज्ञ के लक्षण है?  आदि बातों के बारे में बताया गया है। इसके साथ-ही-साथ निम्नांकित सवालों के भी कुछ-न-कुछ समाधान अवश्य पाएंगे। जैसे- सतोगुण रजोगुण और तमोगुण का क्या स्वभाव है, सतोगुण रजोगुण तमोगुण का अर्थ, सत्वगुण का लक्षण क्या है, रजोगुण का अर्थ क्या है, तमोगुण का मतलब, सत्वगुण का अर्थ, संतुष्ट रहना किस गुण का लक्षण है, सतोगुण का अर्थ, तमोगुणी का अर्थ, 3 गुण क्या है, सतोगुण क्या होता है, रजो गुण का अर्थ, तमोगुण का पर्यायवाची, आदि सवालों की जानकारी प्राप्त करने के पहले आइए गुरु महाराज का दर्शन करें।

'श्रीगीता-योग-प्रकाश' के 13 वां अध्याय का पाठ करने के लिए    यहां दवाएं। 

त्रैगुणों  के मध्य सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का काल्पनिक चित्र
त्रिगुणा में सद्गुरु महर्षि मेंहीं काल्पनिक चित्र

What is the nature of Satoguna Rajoguna and Tamoguna?

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज श्री गीता योग प्रकाश के इस अध्याय में बताएं हैं- What is Gunatra Vibha Yoga?  What is Trigunatmika Prakriti?  What is Mahdbrahma?  What is a Brahmin?  What is the nature of Satoguna Rajoguna and Tamoguna?  What happens when the triangles grow?  What is the effect of Satoguna?  How can one be made timeless?  What are the symptoms of gunatit status?, इत्यादि बातें । इन बातों को समझने के लिए आइए गुरु महाराज लिखित इस अध्याय  का पाठ करें-



श्रीगीता-योग-प्रकाश 

अध्याय 14

अथ गुणत्रयविभागयोग 

इस अध्याय का विषय गुणत्रयविभागयोग है ।

   इसके पहले के अध्याय में त्रयगुणात्मिका प्रकृति का कुछ परिचय कराने के अनन्तर त्रयगुण विभाग का भी कथन होना ही चाहिये । इस अध्याय में उसी त्रयगुण - विभाग का तथा त्रयगुणातीत का वर्णन हुआ है । जिस उत्तम ज्ञान का अनुभव ( साक्षात् होने पर का ज्ञान ) पाकर मुनिगण इस लोक से परम सिद्धि पा गये हैं , उसी ज्ञान का वर्णन यहाँ किया जाता है । इस ज्ञान का सहारा लेकर परमात्मा से एकरूपता पाये हुए लोग सृष्टि के उत्पत्ति काल में भी जन्म नहीं लेते हैं और प्रलय की व्यथा भी नहीं भोगते हैं , अर्थात् जन्म - मरण से सदा का मोक्ष पा लेते हैं ।

     महद्ब्रह्म* अर्थात् प्रकृति , परमात्मा की अधीनस्थ योनि ( उत्पत्ति - स्थान ) है । उसी से उनके द्वारा सारी सृष्टि उपजती है । प्रकृति - स्थित त्रयगुण अनाशी आत्मा को देह के साथ सम्बन्धित रखता है । सत्त्वगुण ज्ञान के साथ बाँधता है , रजोगुण विषय अनुरागी बनाता है , इससे तृष्णा और आसक्ति उपजती है और वह प्राणी को कर्म से बाँधता है । तमोगुण अज्ञान , आलस्य , निद्रा उपजाता है और मोह में डालता है । सत्त्वगुण सुख में और रजोगुण कर्म में आसक्ति उत्पन्न करता है । तमोगुण ज्ञान को ढक कर कर्त्तव्य - मूढ़ता और विस्मरण उत्पन्न करता है । रजोगुण और तमोगुण के दबने से सत्त्वगुण की बढ़ती होती है । सत्त्वगुण और तमोगुण के दबने से रजोगुण की बढ़ती होती है । सत्त्वगुण और रजोगुण के दबने से तमोगुण की बढ़ती होती है ।

      देह और उसके सब द्वारों में जब प्रकाश** ( ब्रह्मज्योति ) उत्पन्न हो और ज्ञान की वृद्धि हो तब सत्त्वगुण की वृद्धि हुई है , ऐसा जानना चाहिये । रजोगुण की वृद्धि में लोभ , संसार में फंसाव , कर्मों का आरम्भ और इच्छा का उदय होता है । तमोगुण की वृद्धि में अज्ञान , मन्दता , असावधानी और मोह उत्पन्न होता है । अपने अन्दर सत्त्वगुण की वृद्धि के काल में मृत्यु हो तो ज्ञानियों के उत्तम लोक में गमन होता है । रजोगुण की वृद्धि में मृत्यु हो तो कर्मों में आसक्त रहने वालों में जन्म होता है और तमोगुण के वृद्धि - काल में मृत्यु हो , तो मूढ़ योनियों में जन्म प्राप्त होता है । 

     सत्कर्म का फल पवित्र और सात्त्विक होता है । राजस कर्म का फल दुःख होता है और तामस कर्म का फल अज्ञान होता है । 

     सात्त्विकता में रहनेवाले ( सुषुम्ना में वृत्ति रखनेवाले ) की ऊर्ध्वगति ( ऊपर ) अर्थात् सूक्ष्मता में चढ़ाई होती है , राजस मध्य में रहते हैं और तामस नीचे वा नरक में जाते हैं ।

     जिसको प्रत्यक्ष दीखने लगता है कि कर्म करनेवाला गुणों ( त्रयगुणमयी प्रकृति ) के अतिरिक्त अन्य नहीं है , वह गुणातीत को भी पहचानता और जानता है । और तब वह परमात्मा के भाव को अर्थात् परमात्मा से एकता को प्राप्त करता है--

 “ जौं जल में जल पैस न निकसे यौं दुरि मिला जुलाहा । " ( कबीर साहब )

 " जल तरंग जिउ जलहि समाइआ । तिउ जोती संगि जोति मिलाइआ ॥ " ( गुरु नानक )

 " सकल दृश्य निज उदर मेलि , सोवइ निद्रा तजि योगी । सोइ हरिपद अनुभवइ परम सुख , अतिशय द्वैत वियोगी ।। सोक मोह भय हरष दिवस निसि देस काल तह नाहीं । तुलसिदास यहि दसाहीन , संशय निर्मूल न जाहीं ।। " -गो ० तुलसीदास ( विनय - पत्रिका )

 तथा 

" जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई ॥ " ( रामचरितमानस )

     इन पद्यों के लिखने का तात्पर्य यह है कि सन्तों की उक्ति गीता के अनुकूल ही है , ऐसा लोगों के जानने में आवे । 

     अब आगे इस अध्याय में गीता बतलाती है कि उपर्युक्त परमात्म - भाव को प्राप्त कर देहधारी गुणातीत वा स्थितप्रज्ञ ∆
 बन जन्म , मृत्यु और बुढ़ापे के दुःखों से छूट जाता है और मोक्ष प्राप्त करता है । 

चर्तुदश अध्याय समाप्त ।। 


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* यहाँ ब्रह्म का अर्थ प्रकृति है । अध्याय ३ के श्लोक १५ में कहा गया है कर्म ' ब्रह्म ' से उत्पन्न होता है । यहाँ ' ब्रह्म ' का अर्थ लोकमान्य बालगंगाधर तिलक महाशय जी और महात्मा गाँधी जी के मतानुकूल ' प्रकृति ' ही है । यही विचार पुनः अध्याय १३ के श्लोक २ ९ में भी बताया गया है । वहाँ कहा गया है कि यथार्थतः प्रकृति ही सर्वत्र कर्म करती है । कतिपय टीकाकार अध्याय ३ के श्लोक के ' ब्रह्म ' शब्द का अर्थ वेद लगाकर कहते हैं कि कर्म वेद से उत्पन्न हुआ है । 

     यहाँ सोचने की बात यह है कि में कर्त्तव्याकर्त्तव्य की मीमांसा तथा विधि एवं कर्त्तव्य कर्म करने और निषिद्ध तथा अकर्त्तव्य कर्म छोड़ने की आज्ञा होनी चाहिये , न कि कर्म की उत्पत्ति ही वेद से होनी चाहिये । इसीलिये तुलसीदास जी ने कहा है-- 

" गनि गुन दोष वेद विलगाये । ( तुलसीकृत रामायण ) 

     उपर्युक्त बातों पर विचार कर मैंने अध्याय ३ श्लोक १५ के ' ब्रह्म का अर्थ ' प्रकृति ' ही ठीक माना है । इस श्लोक में यह भी कहा गया है कि ब्रह्म की उत्पत्ति अक्षर अर्थात् अनाशी परमात्मा से हुई है । अब मैं निर्णयात्मक रूप से इस सिद्धान्त पर पहुँचता हूँ कि प्रकृति परमात्मा से उपजी है । परन्तु प्रकृति के उपजने के पूर्व मायामय देश और काल नहीं थे ; क्योंकि प्रकृति से ही देश और काल बनते हैं । अतएव प्रकृति उपयुक्त देश और काल में नहीं उपजी । इसीलिये देश और काल की दृष्टि से प्रकृति अनादि है , परन्तु परमात्मा - सदृश अज यह नहीं है । निचोड़ यह कि प्रकृति केवल देश - काल - ज्ञान से अनादि है और उत्पत्ति - ज्ञान से सादि है । इसका आदि परमात्मा में है और परमात्मा देशकालातीत हैं । और सन्त सुन्दर दासजी कहते हैं--

" ब्रह्म तें पुरुष अरु प्रकृति प्रगट भई , प्रकृति ते महतत्त्व पुनि अहंकार है ।। अहंकार तें तीन गुण सत्त्व , रज , तम , तमहू तें महाभूत विषय पसार है ।। रजहू तें इन्द्री दश पृथक पृथक भई , सत्त्वहू तें मन आदि देवता विचार है ।। ऐसे अनुक्रम करि , शिष्य सू कहत गुरु , ' सुन्दर ' कहत यह मिथ्या भ्रम - जार है ।।"

 ** यह प्रकाश सबके अन्दर है ही । 

"' चन्दा झलकै यहि जग माहीं । अन्धी आँखन सूझै नाहीं । यहि घट चन्दा यहि घट सूर । यहि घट गाजै अनहद तूर ॥"

" चन्द चढ़ा कुल आलम देखें , मैं देखू भ्रम दूर । हुआ प्रकाश आस गई दूजी , उगिया निर्मल नूर ॥ " ( कबीर साहब ) 

" घट घट अन्तरि ब्रह्म लुकाइआ घटि घटि जोति सबाई । बजर कपाट मुकते गुरमती निरभै ताड़ी लाई ।। " ( गुरु नानक ) 

     सुषुम्ना में दृष्टि स्थिर रखने से सात्त्विकी वृत्ति रहती है और ज्योति - रूप परमात्मा की विभूति का दर्शन होता है । योगी श्री श्यामाचरण लाहिड़ी महोदय का कथन है-- 

" बायें इड़ा नाड़ी दक्षिणे पिंगला , रजस्तमो गुणे करितेछे खेला । मध्ये सत्त्वगुणे सुषुम्ना विमला , धर - धर तारे सादरे ॥ " ( योगसंगीत ) 

∆ भगवद्गीता में गुणातीत और स्थितप्रज्ञ के लक्षण एक ही प्रकार के मिलते हैं । 

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इस अध्याय के बाद वाले अध्याय 15 को पढ़ने के लिए  यहां दवाएं।


प्रभु प्रेमियों "श्रीगीता-योग-प्रकाश" नाम्नी पुस्तक के इस लेख पाठ द्वारा हमलोगों ने जाना कि "gunatrai vibhaag yog kya hai? traigunaatmika prakrti kya hai? mahadbrahm kya hai? braahman kise kahate hain? satogun rajogun aur tamogun ka kya svabhaav hai? traigunon ke badhane par kya hota hai? satogun ka prabhaav kaisa hota hai? gunaateet kaise bana ja sakata hai? kya gunaateet sthitapragy ke lakshan hai?. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका याक्ष कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने । इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस पद्य का पाठ किया गया है उसे सुननेे के लिए निम्नलिखित वीडियो देखें। 



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