श्री-गीता-योग-प्रकाश / 01
प्रभु प्रेमियों ! भारत ही नहीं, वरंच विश्व-विख्यात श्रीमद्भागवत गीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा गाया हुआ गीत है। इसमें 700 श्लोक हैं तथा सब मिलाकर 9456 शब्द हैं। इतने शब्दों की यह तेजस्विनी पुस्तिका भारत की आध्यात्म-विद्या की सबसे बड़ी देन है। संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्तक "श्रीगीता-योग-प्रकाश" इसी पुस्तिका के बारे में फैले हुए सैकड़ों भ्रामक विचारों को दूर करने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें सभी श्लोकों के अर्थ और उनकी टीका नहीं है। गीता के सही तात्पर्य को समझने के लिए जो दृष्टिकोण, साधनानुभूति-जन्य ज्ञान, संतवाणी-सम्मत और गुरु ज्ञान से मेल खाते वचन चाहिए, वही इसमें दर्शाया गया है।
इस लेख में बताया गया है सर्वप्रथम श्री गीता ज्ञान कहां पर और किन को सुनाया गया था, कौरव और पांडव कौन थे, अर्जुन कौन था और उसे गीता ज्ञान सुनाने की आवश्यकता क्यों हुई, अर्जुन विषाद ग्रस्त क्यों हुआ, उसका विषाद कैसे दूर हुआ, विषाद दूर करने का तरीका क्या है, इत्यादि बातों साथ-साथ निम्नांकित सवालों के भी कुछ-न-कुछ का समाधान अवश्य पाएंगे। जैसे- अर्जुन विषाद योग, श्रीमद्भागवत गीता प्रथम अध्याय, विषाद क्या है, बिसाद का अर्थ, विषाद से आप क्या समझते हैं, भगवत गीता का ज्ञान,संपूर्ण गीता ज्ञान, भागवत गीता-ज्ञान, गीता ज्ञान की बातें, गीता का ज्ञान सुनाओ, गीता उपदेश इत्यादि बातें । इन बातों को समझने के पहले आइए गुरु महाराज के दर्शन करें।
"श्री गीता योग प्रकाश" भूमिका पढ़ने के लिए
विषाद मुक्ति पर चर्चा करते गुरुदेव |
ARJUN VISHAD YOG BY Mahrshi Mehi
सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंस जी महाराज श्री गीता जो प्रकाश के प्रथम अध्याय में लिखते हुए बताते हैं कि sarvapratham shree geeta gyaan kahaan par aur kin ko sunaaya gaya tha, kaurav aur paandav kaun the, arjun kaun tha aur use geeta gyaan sunaane kee aavashyakata kyon huee, arjun vishaad grast kyon hua, usaka vishaad kaise door hua, vishaad door karane ka tareeka kya hai, इत्यादि बातें । इन बातों को समझने के लिए आइए गुरु महाराज लिखित 'श्रीगीता-योग-प्रकाश' के प्रथम अध्याय का पाठ करें-
।। ऊ श्रीसद्गुरवे नमः ।।
श्रीगीता - योग - प्रकाश
अध्याय १
अथ अर्जुनविषादयोग
इस अध्याय का विषय विषादयोग है ।
आज से पाँच हजार वर्ष से भी कुछ अधिक काल पूर्व भगवान श्रीकृष्ण का अवतार इस भारत के धरातल पर हुआ था ऐसा लोग कहते हैं । उन्हीं के समय में कौरववंशीय राजाओं के बीच एक भयंकर गृह - युद्ध हुआ था । ये राजा लोग कौरव और पाण्डव कहलाते थे ।
भगवान श्रीकृष्ण ने उस युद्ध में अर्जुन के सारथ्य का भार अपने उपर लिया था । राजा दुर्योधन आदि कौरवों के पिता राज धृतराष्ट्र वृद्ध तथा अन्धे थे । वह रणक्षेत्र नहीं गये थे , अपने घर में ही रहकर युद्ध का समाचार सुनने की इच्छा रखते थे इसलिए उनके मन्त्री संजय उनको युद्ध - समाचार सुनाया करते थे ।
समाचार पूछने पर रणक्षेत्र की प्रारम्भिक बातें बताकर संजय ने आगे कहा - जब दोनों और की सेनाएँ युद्धारम्भ के हेर् आमने - सामने खड़ी हुई , अर्जुन ने भगवान से प्रार्थना की - ' आए मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में ले चलकर खड़ा करने के कृपा करें , जिससे मैं देख सकूँ कि मुझे किन वीरों से लड़ना है।
भगवान ने वैसा ही किया । अर्जुन को दोनों सेनाओं में स्वजन - सम्बन्धी ही दिखाई पड़े । यह देख वह ममताग्रस्त , दया , और विषादयुक्त हो युद्ध से विमुख हो गया ।
गीता के पहले अध्याय में वर्णिन अर्जुनविषादयोग क सारांश यही है । ' विषाद ' के अर्थ दुःख , क्लेश , शोक और खेर आदि है । रणक्षेत्र में उपर्युक्त दृश्य देखकर अर्जुन विषादयुक हुआ और इसी का वर्णन इस अध्याय में हुआ है । इसीलिए इस अध्याय का नाम ' अर्जुनविषादयोग ' दिया गया है । इस अध्यार के अनुकूल ‘ युक्त होना ' योग है , यहाँ यही विदित होता है संजय ने धृतराष्ट्र को जो कुछ सुनाया , उसी का वर्णन भगवद्गीत के अठारहो अध्याय में श्रीकृष्णार्जुनसंवाद के रूप में है ।
।। प्रथम अध्याय समाप्त ।।
इस अध्याय के बाद वाले अध्याय को पढ़ने के लिए
विषाद मुक्ति की रामबाण दवा
प्रभु प्रेमियों ! महाभारत युद्ध में अर्जुन जब विषाद ग्रस्त हो गया था और कुछ भी करने के मूड में नहीं था ।हताश वह निराश था, तब भगवान ने जो-जो सुनाया है उसी का वर्णन संपूर्ण गीता में किया गया है।
संपूर्ण गीता को सुनने के बाद अर्जुन का विषाद दूर हो जाता है और वह पूर्ण स्वस्थ होकर फिर युद्ध करने लग जाता है। इससे ज्ञात होता है कि अगर कोई व्यक्ति विषाद ग्रस्त हो और उसे गीता सुनाया जाए तो वह अवश्य विषाद से मुक्त हो जाएगा। क्योंकि यह विषाद मुक्त करने की जड़ी के समान है। इसमें जो कहा गया है, वह विषाद को दूर करने में पूर्णत: समर्थ है। इस से ज्ञात होता है कि श्रीमद्भागवत गीता का पाठ मानसिक विषाद को दूर करने का रामबाण इलाज या दवा है।
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प्रभु प्रेमियों "श्रीगीता-योग-प्रकाश" नाम्नी पुस्तक के इस अध्याय के पाठ द्वारा हमलोगों ने जाना कि "Where was Sri Gita Gyan first and who was narrated, who were the Kauravas and Pandavas, who was Arjuna and why did he need to narrate the Gita Gyan, why did Arjuna suffer from depression, how did he overcome grief, what is the way to remove grief? is.. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका याक्ष कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। इस लेख का पाठ निम्न वीडियो में किया गया है । इसे अवश्य देखें।
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G01 विषाद के कारण और बिषाद-मुक्ति की अचूक दवा क्या है ।। Bhagavad Gita- 1st Chapter
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
12/30/2019
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कोई टिप्पणी नहीं:
प्रभु-प्रेमी पाठको ! ईश्वर प्राप्ति के संबंध में ही चर्चा करते हुए कुछ टिप्पणी भेजें। श्रीमद्भगवद्गीता पर बहुत सारी भ्रांतियां हैं ।उन सभी पर चर्चा किया जा सकता है।
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