श्रीगीता-योग-प्रकाश / भूमिका (घ)
प्रभु प्रेमियों ! भारत ही नहीं, वरंच विश्व-विख्यात श्रीमद्भागवत गीता भगवान श्री कृष्ण द्वारा गाया हुआ गीत है। इसमें 700 श्लोक हैं तथा सब मिलाकर 9456 शब्द हैं। इतने शब्दों की यह तेजस्विनी पुस्तिका भारत की आध्यात्म-विद्या की सबसे बड़ी देन है। संतमत सत्संग के महान प्रचारक सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज के भारती (हिंदी) पुस्ततक "श्रीगीता-योग-प्रकाश" इसी पुस्तिका के बारे में फैले हुए सैकड़ों भ्रामक विचारों को दूर करने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें सभी श्लोकों के अर्थ और उनकी टीका नहीं है। गीता के सही तात्पर्य को समझने के लिए जो दृष्टिकोण, साधनानुभूति-जन्य ज्ञान, संतवाणी-सम्मत और गुरु ज्ञान से मेल खाते वचन चाहिए, वही इसमें दर्शाया गया है।
इस पोस्ट में इसी पुस्तक के भूमिका के बारे में जानकारी दी गई है और गुरु भक्ति से संबंधित संत सुंदरदास जी महाराज के भजन, भक्त चरण दास जी महाराज की वाणी, महात्मा गांधी के विचार, मोक्ष मुक्ति प्राप्त करने के अन्य संस्कृत ग्रंथों में दिए गए विचार, झूठे और नकली गुरु को त्यागने का उपदेश, इस बारे में जानकारी प्राप्त करने के पहले सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज का दर्शन करें।
"G00 (ग) भगवान बुद्ध, महायोगी गोरखनाथ, भगवान शंकराचार्य आदि महापुरुषों के गुरु भक्ति संबंधी वचन" नामक भूमिका का प्रथम भाग पढ़ने के लिए यहां दवाएं।
असली और नकली गुरुओं पर धर्मशास्त्रों एवं संत-महात्माओं के विचार
सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज 'श्रीगीता-योग-प्रकाश' पुस्तक की भूमिका में गुरु-भक्ति के संबंध में लिखते हुए बताते हैं - guru bhakti se sambandhit sant sundaradaas jee mahaaraaj ke bhajan, bhakt charan daas jee mahaaraaj kee vaanee, mahaatma gaandhee ke vichaar, moksh mukti praapt karane ke any sanskrt granthon mein die gae vichaar, jhoothe aur nakalee guru ko tyaagane ka upadesh, आइए गुरु महाराज द्वारा लिखित भूमिका को ही पढ़कर इस संबंध में अच्छी तरह जानते हैं-
भूमिका (भाग घ)
...गुरु बिन ज्ञान नहिं , गुरु बिन ध्यान नहिं । गुरु बिन आतम , विचार न लहतुहै । गुरु बिन प्रेम नहिं , गुरु बिन नेम नहिं । गुरु बिन सीलहु , सन्तोष न रहतु है । गुरु बिन प्यास नहिं , बुद्धि को प्रकास नहिं । भ्रमहू को नास नहिं , संसेइ रहतु है । गुरु बिन बाट नहि , कौड़ी बिन हाट नहिं । सुन्दर प्रगट लोक , वेद यों कहतु है ॥४५ ॥ ( संत सुंदर दास जी)
इसी आशय की उक्तियाँ और भी सन्तों की हैं , जो बहुलता एवं पुस्तक - वृद्धि के कारण यहाँ नहीं दी जा रही हैं ।
किन्तु इसका मतलब यह नहीं कि जिस किसी को भी गुरु बना लिया जाय । इस मामले में अधिक सावधानी , खोज और सोच - विचार की आवश्यकता है । सन्त चरणदासजी कहते हैं
समझ रस कोइक पावै हो । गुरु बिन तपन बुझे नहीं , प्यासा नर जावै हो । बहुत मनुष ढूंढत फिरै , अन्धरे गुरु सेवै हो । उनहूँ को सूझै नहीं , औरन कहै दैवें हो ॥२ ॥ अन्धरे को अन्धरा मिलै , नारी को नारी हो । हाँ फल होयगा , समझै न अनारी हो ॥३ ॥ गुरु सिष दोऊ एक से , एक व्यवहारा हो । गये भरोसे डूबि कै , वै नरक मॅझारा हो ॥४ ॥ सुकदेव कहैं चरनदास तूं , इनका मत कूरा हो । ज्ञान मुक्ति जब पाइये , मिलै सतगुरु पूरा हो ॥५ ॥ ( चरणदासजी )
गुरु सिष अन्ध वधिर कर लेखा । एक न सुनइ एक नहिं देखा । हरइ सिष्य धन सोक न हरई । सो गुरु नरक महँ परई ॥ ( गोस्वामी तुलसीदास )
महात्मा गाँधीजी को उक्ति इस सम्बन्ध में इस तरह है " हिन्दू - धर्म में गुरु - पद को जो महत्त्व दिया गया है , उसे मैं मानता हूँ । ' गुरु बिन होइ न ज्ञान ' यह वचन बहुतांश में सच है । अक्षर ज्ञान देनेवाला शिक्षक यदि अधकचरा हो तो एक बार का काम चल सकता है , परन्तु आत्मा - दर्शन करानेवाले अधूरे शिक्षक से हरगिज काम नहीं चलाया जा सकता है । सफलता गुरु की खोज में ही है । क्योंकि गुरु शिष्य को योग्यता के अनुसार ही मिला करते हैं । इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक साधक को योग्यता प्राप्ति के लिए प्रयत्न करने का पूरा - पूरा अधिकार है । परन्तु इस प्रयत्न का फल ईश्वराधीन है । " ( आत्मकथा - महात्मा गाँधी , भाग २ , अध्याय १ , पृष्ठ ६२ नौवीं बार , सन् १६४८ )
महाभारत , तंत्रशास्त्र एवं सन्तवाणी के निम्न उद्धरणों में तो यह स्पष्ट ही कहा गया है कि यदि किसी ने अपनी अनभिज्ञता के कारण किसी अयोग्य गुरु को धारण कर लिया हो , तो वैसे गुरु का अविलम्ब त्याग कर दे ।
गर्वित कार्य अकार्य नहिं , जानत चलत कुपंथ । ऐसे गुरु कहै त्यागिये , यही कहत शुभ ग्रन्थ ।। ( महाभारत , उद्योगपर्व , अध्याय १८० , श्लोक २५ )
ज्ञानान्मोक्षमवाप्नोति तस्माज्जानं परास्परम् । अतो यो ज्ञानदानेहि न क्षमस्तंत्यजेद् गुरुम ॥ ( बृहत्तन्त्रसार )
ज्ञान से मोक्ष होता है , इसलिए ज्ञान से बढ़कर दूसरा उपदेश नहीं है । इसलिए जो गुरु ज्ञान - दान में ( अर्थात् ज्ञानोपदेश में ) समर्थ ( योग्य ) नहीं है , ऐसे गुरु को छोड़ देना चाहिए ।
झूठे गुरु के पच्छ को , तजत न कीजै बार । द्वार न पावै सब्द का , भटकै बारम्बार ॥ ( कबीर साहब )
इस विषय की विशेष जानकारी के लिए ' सत्संग - योग ' ( चारो भाग ) को पढ़ें ।
विशेष रूप से याद रखने की बात यह है कि गीता परम रहस्यमयी पुस्तिका है । इसी गुप्त योग - रहस्य - निधियों पर भी प्रकाश डालने के लिए ' श्रीगीता - योग - प्रकाश ' में लिखा गया है । उपर्युक्त दृष्टिकोणों से गीतार्थ के भाव आवश्यकतानुकूल लिखे गये हैं ।
' श्रीगीता - योग - प्रकाश ' सब श्लोको के अर्थ वा उनकी टीकाओं की पुस्तिका नहीं है । गीता के सही ताप्पर्य को समझने के लिए जो दृष्टिकोण चाहिए , वही इसमें दरसाया गया है ।
गीता के बारे में फैले हुए सैकड़ों भ्रामक विचारों में से एक का भी निराकरण यदि ' श्रीगीता - योग - प्रकाश ' से हुआ , तो मैं अपना प्रयत्न सफल समदूंगा ।
पाण्डुलिपि की प्रतिलिपि शुद्धतापवूक तैयार करने में , शोध्यपत्र ( प्रूफ ) देखने तथा पुस्तक - प्रस्तुत होने के अन्यान्य कार्यों में जिन सत्संगियों ने परिश्रम किया है , वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं ।
श्रीबाबू सुरेन्द नारायण सिंह , एम ० ए ० , एल ० बी ० , शास्त्री ने भी शोध - कर्म में यथेष्ट परिश्रम किया है , अतएव वे भी हमारे धन्यवाद के पात्र हैं ।
श्रीसन्तमत-सत्संग मन्दिर, मनिहारी सत्संग सेवक
विजया दशमी , सं ० २०१२ वि ० मॅहीं
।। भूमिका समाप्त ।।
इस भूमिका के बाद 'श्रीगीता-योग-प्रकाश' पुस्तक का प्रथम अध्याय पढ़ने के लिए यहां दबाएं।
प्रभु प्रेमियों ! गुरु महाराज के भारती पुस्तक "श्रीगीता योग प्रकाश" के इस लेख का पाठ करके आपलोगों ने जाना कि "Hymns of Sant Sunderdas Ji Maharaj related to Guru Bhakti, utterances of Bhakta Charan Das Ji Maharaj, thoughts of Mahatma Gandhi, ideas given in other Sanskrit texts for attaining salvation, preaching to abandon false and fake Guru. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले प्रवचन या पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्तत लेख का पाठ किया गया है-
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G00 (घ) असली और नकली गुरुओं पर धर्मशास्त्रों एवं संत-महात्माओं के विचार ।। सद्गुरु महर्षि मेंहीं
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
8/25/2018
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प्रभु-प्रेमी पाठको ! ईश्वर प्राप्ति के संबंध में ही चर्चा करते हुए कुछ टिप्पणी भेजें। श्रीमद्भगवद्गीता पर बहुत सारी भ्रांतियां हैं ।उन सभी पर चर्चा किया जा सकता है।
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